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________________ नृत्याध्यायः निपुण अभिनेता को, विप्रलब्धा (संकेत-स्थल में प्रिय के न मिलने से दुःखी नायिका), खण्डिता ( नायक अन्य स्त्री के संयोग-चिह्न देखकर कुपित हुई नायिका ), कलहान्तरिता ( पति या नायक का अपमान कर पीछे पछताने वाली नायिका) और प्रोषितभतं का ( वह स्त्री जिसका पति परदेश गया हो ) नायिकाओं का भाव (क्रमश:) ग्लानि, अश्रुपात, दीनता, क्रोधयुक्त मुख, आभूषणरहित अंग, दुःख और रोदन के द्वारा प्रदर्शित करना चाहिए । विचित्र मण्डनेर्हषैर्वषैर्नानाविधैरपि 1 तथातिशयशोभाभिदिशेत् स्वाधीनभर्तृकाः ॥ ६८३ ॥ वार्ता (पति को अपने वश में रखने वाली ) नायिकाओं का विचित्र प्रकार के आभूषण, नाना प्रकार के वेश तथा प्रचुर अंगराग-प्रसाधनों द्वारा अभिनय करना चाहिए । एवं वासकसज्जापि निर्देश्या नाटयकोविदैः ॥ ६८४॥ 680 इसी प्रकार नाट्यनिपुण अभिनेताओं को वासकसज्जा ( शृंगार करके नायक की प्रतीक्षा करने वाली ) नायिका का भी अभिनय करना चाहिए । नियुज्यन्ते बुधैरेतेऽभिनया भावसंयुताः ॥६८५ ॥ विद्वानों को चाहिए कि उक्त अभिनयों को वे भावसंयुक्त होकर सम्पन्न करें । अभिनेताओं को नाट्य-निर्देश 679 या यस्य नियता लीला गतिश्च स्थितिरेव च । तस्य रङ्गप्रविष्टस्तां नटस्तावद् निनिर्दिशेत् । यावन्न निर्गतो रङ्गादिति सामान्यतो विधिः ॥ ६८६ ॥ २०० 682 रंगमंच पर प्रवेश करने वाले अभिनेता को चाहिए कि जिस अभिनेय वस्तु की जो लीला, गति तथा स्थिति निश्चित हो, उसको तब तक प्रदर्शित करे, जब तक वह रंगमंच पर अवस्थित रहे, यह सामान्य विधान है । दक्षिणेनालपद्म ेन वामेन चतुरेण च । परिमण्डलितेनाथ मयूरललितेन च ॥ ६८७॥ वीराख्यया तथा दृष्ट्या शिरसोद्वाहितेन च । एवं विनिर्दिशेत् षड्जं कोविदो नाटयन्नृत्ययोः ॥ ६८८ ॥ 681 683 684
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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