SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नृत्याध्यायः नाट्यवेत्ता को रेचिकों तथा अंगहारों के द्वारा सारस, मोर, हंस तथा अन्य बड़े पक्षियों का अभिनय करना चाहिए। अश्वेभोष्ट्रखरव्याघ्रसिहांश्च महिषादिकान् । 666 अङ्गतिप्रकारश्चाभिनयेन्निपुणो नटः ॥६६६॥ निपुण अभिनेता को घोड़ा, हाथी, ऊँट, गधा, वाघ, सिंह तथा भैसा आदि का अभिनय गति-प्रचार के अंगों से करना चाहिए। यक्षों तथा देवताओं आदि का अभिनय (६) ये यक्षा राक्षसा दैत्याः पिशाचाद्यास्तथापरे । . 667 परोक्षास्तेऽभिनेतव्या अङ्गहारैः प्रयोक्तृभिः ॥६७०॥ प्रत्यक्षा येऽभिनेयास्ते भयोद्वेगैः सविस्मयः ॥६७१॥ 668 अभिनेताओं को यक्षों, राक्षसों, दैत्यों, पिशाचों और परोक्ष प्राणियों या वस्तुओं को अंगहारों द्वारा अभिनीत करना चाहिए। प्रत्यक्ष यक्ष आदियों का अभिनय भय, उद्वेग तथा आश्चर्य के भावों द्वारा करना चाहिए। सभावैश्चेष्टितैर्देवाः प्रणामकरणादिभिः । अप्रत्यक्षा विनिर्देश्याः प्रयोगनिपुणैर्नटः ॥६७२॥ 669 प्रत्यक्षाः देवताः साक्षात्पूजोपकरणादिभिः ॥६७३॥ नाट्य-प्रयोग में निपुण अभिनेताओं को भावपूर्ण चेष्ठाओं और प्रणाम आदि के द्वारा अप्रत्यक्ष देवताओं का अभिनय करना चाहिए। किन्तु प्रत्यक्ष देवताओं का अभिनय साक्षात् पूजन-सामग्री आदि के द्वारा करना चाहिए। निदिशेदथ वृक्षादीनचलांश्च समुच्छितान । 670 ऊर्ध्वप्रसारणाद् बाह्वोर्दर्शयेल्लोकयुक्तितः ॥६७४॥ ऊँचे वृक्षों और पर्वतों का भाव बाहुओं को ऊपर फैला कर लोक-रीति के अनुसार प्रदर्शित करना चाहिए । __ मञ्जुलैरुज्ज्वलनिनिमेषैः सुलोचनः । 671 मुदितेनापि मनसा दर्शयेद् दिव्ययोषितः ॥६७५॥ सुन्दर तथा उज्ज्वल वेशों, अपलक नेत्रों और प्रसन्न मन से दिव्य स्त्रियों (देवांगनाओं तथा अप्सराओं) का अभिनय करना चाहिए।
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy