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________________ उपांग प्रकरण छह प्रकार का मुख का अभिनय मुख के भेद भुग्नमुद्वाहि विवृतं विधुतं विनिवृत्तकम् । 570 व्याभुग्नं चेति षोढोक्तं मुखं तल्लक्ष्म चोच्यते । मुख के छह भेद होते हैं ; १. भुग्न, २. उद्वाहि, ३. विवृत, ४. विधुत, ५. विनिवृत्त और ६. व्याभुग्न । अब उनके लक्षण बताये जाते हैं। १. भुग्न और उसका विनियोग तद्भग्नं यदधोवक्त्रं यतिप्रकृतिलजयोः ॥५७४॥ 571 नीचे झुका या लटका हुआ मुख भुग्न कहलाता है । यतियों के स्वभाव और लज्जा का भाव प्रकट करने के लिए उसका विनियोग होता है। २. उद्वाहि और उसका विनियोग उत्क्षिप्तमास्यमुद्वाहि लीलानादरयानयोः ॥५७५।। ऊपर को खुले या उठे हुए मुख को उद्घाहि कहते हैं। स्त्रियों की लीला, अनादर और वाहन के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ३. विवृत और उसका विनियोग विवृतं त्वोष्ठविश्लेऽपि शोके हास्ये भयादिषु ॥५७६॥ 572 अलग-अलग ओठों से युक्त खुले हुए मुख को विवृत कहा जाता है । शोक, हास्य और भय आदि के भाव-प्रदर्शन में उसका विनियोग होता है। ४. विषुत और उसका विनियोग _ विधुतं तिर्यगायामि नैवमित्यादिवारणे ॥५७७॥ तिरछे फैलाये हुए मुख को विधुत कहते हैं । ऐसा नहीं' इस प्रकार रोकने या मना करने के भाव में उसका विनियोग होता है। ५. विनिवृत्त और उसका विनियोग व्यावृत्तं विनिवृत्तं तद् रुषीpसूययोरपि । 573 विहृतावज्ञया चैतत् कामिनीनामपि स्मृतम् ॥५७८॥ १७५
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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