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________________ उपांग प्रकरण 453 दष्टनिष्कर्षणे तद्वद् ग्रहणं चेति सञ्जगुः । अष्टौ दशनकर्माणि लक्ष्मलक्ष्यविशारदाः । जिनसे दांतों के भेद अवगत होते हैं, उन कार्यों का मैं यहाँ निरूपण कर रहा हूँ । लक्षण और लक्ष्य के ज्ञाताओं ने दन्तकर्म के आठ भेद बताये हैं। उनके नाम हैं : १. सम, २. छिन्न, ३. खण्डन, ४. चुविकत, ५. कटन, ६. दष्ट, ७. निष्कर्षण और ८. ग्रहण । १. सम और उसका विनियोग ___ सममुक्तं मनाक् श्लेषस्तत् स्यात् सहजकर्मणि ॥५५३॥ 664 जिन दाँतों को किञ्चित् मिला लिया जाय उन्हें समकर्म कहते हैं । सामान्यतः सभी प्रकार के अभिनयों में उसका विनियोग होता है। २. छिन्न और उसका विनियोग छिन्नं तु दृढसंश्लेषो रोदने व्याधिशीतयोः । वीटिकाछेदने भीतौ व्यायामादिष्वपि स्मृतम् ॥५५४॥ 555 दाँतों को दृढ़ता से मिलाना छिन्न कर्म कहलाता है। रुदन, व्याधि, शीत, कपड़े की गाँठ काटने, भय और व्यायाम आदि के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ३. खण्डन और उसका विनियोग मुहुर्दशनसंश्लेषविश्लेषः खण्डनं मतम् । संलापेऽध्ययने तत् स्याज्जपभक्षणयोरपि ॥५५५॥ 556 दाँतों को बार-बार मिलाना और अलग करना खण्डन कर्म कहलाता है । वार्तालाप, अध्ययन, जप और भक्षण आदि के अभिनय में उसका विनियोग होता है । ४. चुक्कित और उसका विनियोग दूरे स्थितिर्दन्तपङ्क्त्योः चुक्कितं तच्च जम्भणे ॥५५६॥ दोनों दन्त-पंक्तियों को दूरी में रखना चुक्कित कर्म कहलाता है । जम्हाई लेने के अभिनय में उसका विनियोग होता है । ५. कुट्टन और उसका विनियोग .. कुट्टनं दन्तसंघर्षः शीते भीरुगजरास्विदम् ॥५५७॥ 667 दाँतों को रगड़ना या किटकिटाना कुट्टन कर्म कहलाता है । ठंडक, भय, रोग और बुढ़ापे के अभिनय में उसका विनियोग होता है।
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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