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नृत्याध्यायः
खोले हुए मुँह में फैलायी गयी जिह्वा को ऋज्वी कहते हैं। श्रम और हिंस्र पशुओं की प्यास के अभिनय में उसका विनियोग होता है ।
२. लोला और उसका विनियोग
व्यात्तास्ये या चला लोला सा वेतालनिरूपणे ॥ ५४७ ॥
खोले हुए मुँह में लपलपाती जिह्वा को लोला कहते हैं । वेताल के अभिनय में उसका विनियोग होता है । ३. लेहनी
या जिह्वा लेढि दन्तोष्ठं सा सद्भिर्लेहिनी मता ॥ ५४८ ॥ जो जिह्वा दाँत और ओष्ठ को चाटती हो, सज्जनों ने उसे लेहनी कहा है । ४. वक्रा और उसका विनियोग
प्रसृतास्यान्नताग्रे या सा वक्रा नृहरौ मता ॥ ५४६ ॥
जो आगे फैली हुई जिह्वा अग्र भाग से झुकी हो, वह वा कहलाती है । नृसिंह के अभिनय में उसका विनियोग होता है ।
५. सुक्कानुगा और उसका विनियोग
या जिह्वा लीढक्का सा प्रोक्ता सृक्कानुगा रुषि ।
स्वादुभक्ष्ये चैवमन्ये ज्ञेया अभिनया अपि ॥ ५५०॥
जो जिह्वा ओष्ठ के प्रान्त भाग को चाटती हो. वह सृक्कानुगा कहलाती है । क्रोध तथा स्वादिष्ट भोजन के अभिनय में उसका विनियोग होता है । इसी प्रकार अन्य अभिनयों में भी उसका विनियोग समझ लेना चाहिए । ६. उन्नता और उसका विनियोग
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प्रसारितमुखे या वोन्नता जिह्वोन्नता मता ।
सा वक्त्रान्तःस्थवीक्षायां जृम्भाभिनयनेऽपि च ॥ ५५१॥
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भिद्यन्ते दशना यैस्तु तानि कर्माण्यहं ब्रुवे ।
समं छिन्नं खण्डनं च चुक्कितं कुट्टनं तथा ॥५५२॥
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फैलाये हुए मुँह में जो जिह्वा ऊपर की ओर उठी हो, वह उन्नता कहलाती है। मुँह के भीतर देखने तथा जम्हाई लेने के अभिनय में उसका विनियोग होता है ।
आठ प्रकार के दन्तकर्म का निरूपण
दाँतों के भेद
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