SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मत्याध्यायः ३. संहत और उसका विनियोग लग्नान्तर्जानु यज्जानु संहतं तद् बुधर्मतम् । तदाकोपलञादिरतिभावेषु योषिताम् ॥४१२॥ 415 यदि एक जानु को दूसरे जानु के नीचे सटा कर रख दिया जाय तो विद्वानों के कथनानुसार उसे संहत जानु कहा जाता है। ईर्ष्या, कोप, लज्जा और स्त्रियों के रति-भावों (कामकेलियों) के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ४. विवत और उसका विनियोग जानुद्वयं बहिर्भूतं विवृतं जानु सम्मतम् । नियुज्यते वाजिगजारोहणादिषु सूरिभिः ॥४१३॥ 416 यदि दोनों जानुओं को बाहर की ओर फैला दिया जाय तो उसे विवृत्त कहते हैं । हाथी और घोड़े आदि पर चढ़ने आदि के अभिनय में विद्वानों ने उसका विनियोग बताया है। ५. सम और उसका विनियोग स्वभाविकं समं जानु स्वभावावस्थितौ मतम् ॥४१४॥ यदि जान को स्वाभाविक रूप में रखा जाय तो उसे सम कहते हैं । स्वाभाविक अवस्था का भाव व्यक्त करने में उसका विनियोग होता है। ६. अर्धकुञ्चित ___ नमनात्तु नितम्बस्य प्रोक्तं जान्वर्धकुञ्चितम् ॥४१५॥ 417 यदि नितम्ब को झुका दिया जाय तो उसे कुञ्चित जान कहते हैं। .. ७. कुञ्चित और उसका विनियोग श्लिष्टोरुजङ्घ जानक्तं कुञ्चितं सद्भिरासने ॥४१६॥ यदि (घुटनं को मोड़ कर) उरु और जंघा को सटा दिया जाय तो उस जानु को कुञ्चित कहते हैं । सज्जनी न आसन के अभिनय में उसका विनियोग बताया है। पाँच प्रकार का मणिबन्ध अभिनय मणिबन्ध (कलाई) के भेद निकुञ्चाकुञ्चितौ स्यातां चलश्च भ्रमितः समः । ___418 एवं पञ्चविधो धीरैर्मणिबन्धः प्रकीर्तितः ॥४१७॥ । १३८
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy