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________________ नत्याध्यायः २. नता और उसका विनियोग नमज्जानुस्तु या जङ्घा सा नता परिकीर्तिता । 406 गतस्थानासनेष्वेषा वीरसिंहसुतोदिता ॥४०१॥ यदि घुटने को मोड़ दिया जाय तो वह नता जंघा कहलाती है। अशोकमल्ल ने गमन, स्थान और आसन के अभिनय में उसका विनियोग बताया है। ३. उद्वाहिता और उसका विनियोग उर्ध्वं गतोद्वाहिता स्यादाविष्टगमनादिषु ॥४०२॥ 407 यदि जंघा को ऊपर की ओर उटाया जाय तो वह उवाहिता कहलाती है। आवेश तथा यमन (या भूत आदि से आविष्ट व्यक्ति) आदि के भाव-प्रदर्शन में उसका विनियोग होता है। ४. आतिता और उसका विनियोग दक्षिणे वामतः पादे वामे दक्षिणतो मुहुः । कृते योज्यावर्तिताख्या विदूषकपरिक्रमे ॥४०३॥ 408 यदि दाहिना पैर बाँयी ओर और बाँया पैर दाहिनी ओर बार-बार चलाया जाय तो उसे आतिता जंघा कहते हैं । विदूषक के चक्कर काटने में उसका विनियोग होता है। ५. परिवर्तिता और उसका विनियोग प्रतीपं यायिनी जङ्घा कथिता परिवर्तिता । ताण्डवेऽशोकमल्लेन नृपापण्या मनीषिणा ॥४०४॥ 409 उक्त आवर्तिता जंघा के विपरीत क्रिया वाली जंघा को परिवर्तिता कहते हैं । मनीषी महाराज अशोकमल्ल ने ताण्डव नृत्य के अभिनय में उसका विनियोग बताया है। ६. बहिर्गता पार्श्वप्रसारिता नृत्ये सद्विरुक्ता बहिर्गता ॥४०॥ यदि नृत्य में जंघा को बगल की ओर फैलाया जाय तो सज्जनों ने उसे बहिर्गता कहा है । ७. कम्पिता और उसका विनियोग कम्पिता कम्पनादुक्ता भये घघरिकाध्वनौ ॥४०६॥ 410 काँपती हुई जंघा को कम्पिता कहा जाता है। भय और घर्घर ध्वनि का भाव प्रकट करने में उसका विनियोग होता है। १३६
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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