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________________ हस्त प्रकरल. 322 324 ३०. अरालखटकामुख हस्त पताको स्वस्तिकीकृत्य व्यावृत्तपरिवत्तितौ । अलपद्मावथे(? अवदे)वाथ पद्मकोशौ करावुभौ ॥३११॥ ऊर्ध्वमुखौ क्रमात् कृत्वा व्यावृत्तपरिवत्तितौ । अथारालं करं वाममुत्तानं रचयेत्ततः ॥३१२॥ यदान्यं खटकावक्र चतुरस्रमधोमुखम् । 323 कुर्यादेवं तदा हस्तावरालखटकामुखौ ॥३१३॥ अथवा स्वस्तिकाकारावरालखटकामुखौ । विधायादावरालौ चेद्रेचितौ खटकामुखौ ॥३१४॥ तदा वा भवतो हस्तावरालखटकामुखो । 325 वितर्के सविवादानां वणिजामेष युज्यते ॥३१॥ वक्षोग्रस्थः पुरोवकः खटकास्याभिधः करः । उन्नतानः परोऽरालः तिर्यक्किञ्चित्प्रसारितः ॥३१६॥ पार्श्वव्यत्यासतो यद्वा निजे पार्वे करौ यदा । । 327 तालान्तरौ स्थितौ स्यातां तदैतावपरे जगुः ॥३१७॥ पहले दोनों पताक हस्तों को स्वस्तिकाकार बना कर पीछे की ओर मोड़ दिया जाय तथा घुमा दिया जाय । फिर दोनों पद्मकोश हस्तों को अलपन की तरह ऊर्ध्वमुख करके उन्हें व्यावृत्त तथा परिवर्त कर दिया जाय । तदनन्तर बाँये अराल हस्त को उत्तान और दाँये खटकामुख हस्त को चतुरस्र तथा अधोमुख कर दिया जाय । इस प्रकार की अभिनय-मुद्रा को अराल खटकामुख कहते हैं । अथवा दोनों स्वस्तिक हस्तों को पहले अराल तथा खटकामुख बना दिया जाय; या पहले दोनों को अराल बना कर रेचित किया जाय, अथवा पहले खटकामुख बना कर रेचित किया जाय, तो वे अरालखटकामख कहलाते हैं। विवाद करते हुए बनियों के आशय में इन हाथों का प्रयोग होता है। अन्य आचार्यों का अभिमत है कि जब एक खटकामुख हस्त छाती के अग्रभाग में स्थित हो; वह वक्र होकर पूर्वाभिमुख हो; उसका अग्रभाग उन्नत हो; और दूसरा अराल हस्त तिरछा करके कुछ फैला हो ; अथवा 326 १५
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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