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________________ हस्त प्रकरण जाता है। किन्तु अन्य आचार्यों का अभिमत है कि जब दोनों खटकामख हस्तों को धीरे से ले जाकर उनके अग्रभाग को शिर पर संलग्न कर दिया जाय तब उन्हें पल्लव हस्त कहते हैं । १३. पक्षवञ्चितक हस्त त्रिपताको कटीमूनि धृतानों पक्षवञ्चितौ ॥२७८॥ 286 जब दोनों हाथ त्रिपताक मुद्रा में, अग्रभाग से एक कमर पर और दूसरा शिर पर रखा हुआ हो, तब उन्हें पक्षवञ्चितक हस्त कहते हैं । १४. पक्षप्रद्योतक हस्त एतावेव परावृत्तौ पक्षप्रद्योतको करौ । उत्तानितौ केचिदिमौ परे तूर्ध्वगताङ्गुली ।। 287 पराङ्मुखौ च पूर्वाभ्यां प्राहुरेतावनन्तरम् ॥२७॥ यदि पक्षवञ्चितक हस्तों को उलटा कर दिया जाय तो उन्हें पक्षप्रद्योतक हस्त कहते हैं । कुछ आचार्य दोनों पक्षवञ्चित हस्तों को उत्तान कर देने पर पक्षप्रद्योतक हस्त कहते हैं । अन्य आचार्यों का मत है कि उक्त पक्षवञ्चितक उत्तान हस्तों के विपरीत यदि उनकी उंगलियों को ऊर्ध्वमुख कर दिया जाय तो उन्हें पक्षप्रद्योतक हस्त कहते हैं। १५. ऊर्ध्वमण्डलिन् हस्त व्यावत्तिक्रियया वक्षःस्थलात्प्राप्य ललाटकम् । 288 . ' तत्पाश्वमागतौ हस्तौ विततौ मण्डलभ्रमात् ॥२८॥ ऊर्ध्वमण्डलिनों प्रोक्तावथ लक्ष्मापरे जगुः । 289 ललाटप्राप्तिमर्यादमर्थतौ नृतकोविदाः । चक्रवतिनिकेत्याहुलॊकशास्त्रानुसारतः ॥२८१॥ 290 जब दोनों हाथों को घुमाते हुए वक्षःस्थल से ललाट पर और फिर बगल में आ जाँय तथा मण्डलकार में घमते हए फैल जाय, तब उन्हें ऊर्ध्वमण्डलिन हस्त कहा जाता है। दूसरे आचार्यों का कहना है कि उनका ललाट तक पहुंचना ही पर्याप्त है। किन्तु नृत्तविद्याविशारदों का अभिमत है कि लोक और शास्त्र के अनुसार (चक्राकृत होने के कारण) उन्हें चक्रवर्तिनिका नाम से भी कहा जाता है। १०९
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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