SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काव्यप्रकाशा [सू. ६] वाच्यादयस्तदर्थाः स्युःवाच्यलक्ष्यव्यङ्ग्या: । 'एषा मिति 'स्वरूप'-लक्षणं, तथा च शिष्यजिज्ञासानुरोधाद् नेदानीमेव तदुच्यत इति भावः । वृत्त्याश्रयस्य प्रथमं जिज्ञासाविषयत्वाद् अर्थस्यापि व्यञ्जनारूपवृत्त्याश्रयत्वमिति प्रथमतस्तत्र व जिज्ञासेति तान् विभजतेसूत्रार्थः - (सू० ६) 'वाच्यादय' इति-शब्दानामपि लक्षणमर्थघटितमिति तेषां लक्षणमकृत्वाऽप्यर्थविभाग इति नव्याः । ननु वाच्य आदिर्येषां ते वाच्यादय इति विग्रहेणातद्गुणसंविज्ञानबहुव्रीही वाच्यस्याप्रवेशो बहुवचनानुपपत्तिश्च । न च तद्गुणसंविज्ञानबहुव्रीहिणा त्रयाणामुपादानमिति वाच्यम् । लक्षणया त्रयाणामेकलक्ष्यतावच्छेदकप्रकारेणोपस्थितौ भिन्न-भिन्नविभाजकतावच्छेदकावच्छिन्नत्वेनानुपस्थित्या विभागानुपपत्तिः। ___ "गङ्गायां घोषः" में जो गङ्गा शब्द (प्रवाह अर्थ का) वाचक है वही (तीर अर्थ का) लक्षक है और वही (शोतत्व पावनत्वादि अर्थ का) व्यञ्जक है (ऐसी स्थिति में) यह शब्द वाचक ही है, या लाक्षणिक ही है, या व्यञ्जक ही है, यह नहीं कहा जा सकता । इस तरह शब्द का पूर्वोक्त विभाग गलत है, यह शंङ्का नहीं करनी चाहिए क्योंकि (यह विभाग शब्दों का नहीं; किन्तु शब्द की उपाधियों का किया गया है ) जिस प्रकार एक ही व्यक्ति उपाधिभेद अथवा सम्बन्धभेद से भिन्न (कभी पिता और कभी पुत्र) हो जाता है; उसी प्रकार (वाच्य, लक्ष्य और व्यङ्गयरूप) उपाधि के कारण भिन्न मान कर शब्द का विभाग किया गया है। (इस तरह) यह विभाग वस्तुतः शब्द का स्वभावकृत नहीं है; अपितु उपाधिकृत है ? जिस तरह उपाधिभेद से शब्द तीन प्रकार के होते हैं, उसी प्रकार अर्थ भी तीन प्रकार के होते हैं, यह अभी (मूल में) व्यक्त किया जायगा। (शब्द के) विभाग के उल्लेख के बाद लक्षण के सम्बन्ध में जिज्ञासा उत्पन्न होती है अर्थात् वाचक, लाक्षणिक और व्यञ्जक शब्द किसे कहते हैं, यह प्रश्न उठता है। इसलिए यहाँ उनका लक्षण देना उचित था; तथापि उनका लक्षण जो नहीं दिया गया है, उसका कारण बताते हैंकाव्यगत अर्थ के तीन भेद 'एषामिति'-इन (वाचक, लाक्षणिक और व्यञ्जक शब्दों का) स्वरूप (लक्षण) आगे ("साक्षात् सङ्कतितं योऽर्थमभिधत्ते स वाचक: "तद्भुर्लाक्षणिकः" "तयुक्तो व्यञ्जकः शब्दः" सूत्रों मे) बताया जायगा। इसलिए शिष्य की जिज्ञासा के अनुरोध से यही (अभी) उनका लक्षण नहीं बताया गया (आगे के निरूपण से शिष्य की जिज्ञासा शान्त हो ही जायगी इस आशय से और पिष्ट-पेषण से बचने के लिए उनका लक्षण यहां नहीं दिया गया। जिज्ञासू छात्र थोड़ी देर तक अपनी जिज्ञासा पूर्ति की प्रतीक्षा करें या आगे देखकर अपनी जिज्ञासा शान्त कर लें)। दूसरी बात यह भी थी जिससे अर्थ का निरूपण पहले किया गया। जिज्ञासा का प्रथम विषय वृत्त्याश्रय है; क्योंकि वृत्ति विशिष्ट शब्द से उपस्थिति अर्थ ही शाब्दबोध का विषय होता है। अथवा यों कहिए कि जिस अर्थ की उपस्थिति अभिधा, लक्षणा अथवा व्यजनावृत्ति से होती है; उसीका शाब्दबोध में भान होता है । अर्थात् गुड़ का शब्दार्थ मधुर नहीं माना जाता किन्तु Treacle ही माना माता है। इसलिए शब्दार्थ निरूपण प्रकरण में वत्त्याश्रय होने से जैसे शब्द के सम्बन्ध में (१) काव्य प्रकाश सूत्र ६, (२) का. प्र० सूत्र २६ (३) का. प्रा० सूत्र ३३ ।
SR No.034217
Book TitleKavya Prakash Dwitya Trutiya Ullas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy