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भाषाटीकासहितः ।
'एलाकुङ्कुमचोचजातिपलयुक्छ्रीपुष्पजातीफलं मस्तक्या करहाटनागरयुतं फेनाहिकृष्णान्वितम् । एतेषां समशालशीतलरजः स्यादर्द्धकस्तूरिका दद्यात्क्षौद्रयुतं दिनांतसमये यामद्वयं स्तम्भकृत् ॥ १॥
द्वितीय: ]
(७७)
३ -- इलायची, केशर, तज, जावित्री, तमालपत्र, लौंग, जायफल, मस्तंगी, अकरकरा, सोंठ, अफीम, पीपल इन सबको बराबर लेवे और इन सबकी बरावर मिश्री और औषधियोंसे आधी कस्तूरी लेवे, सबको मिलाय रात्रिके समय इस चूर्णको शहद मिलाकर लेवे तो दो प्रकारका स्तंभन होवे ॥ १ ॥
शिलाजतुक्षौद्रविडङ्गसर्पिलहाभयापारदताप्यभाष्यम् । आपूर्यते दुर्बलदेहधातुः स्त्रियं निशायां च यथा शशांकः ॥ २ ॥
शिलाजीत, शहद, वायविडंग, घृत, सार, हरड, रससिंदूर, सोनामक्खी इन सबका चूर्ण पन्द्रह दिन सेवन करनेसे दुर्बल देवकी सब धातुपुष्टि करे, चन्द्रमाके समान प्रकाशमान करे ॥ २ ॥
सत्त्वं गुडूच्या गगनं सलोहमेला सिता मागधिकासमेतम् । एतत्समस्तं मधुनाऽवलीढं रामा शतं सेवयतीह षण्ढः ॥ ३ ॥
गिलोयका सत्त्व, अभ्रकसार, छोटी इलायची, मिश्री, पीपल इन सबका चूर्ण शहद के साथ मिलाकर खानेसे नपुंसकभी सौ स्त्रियोंसे सम्भोग करे || ३ ||
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