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(७६) योगचिन्तामणिः। चूर्णाधिकारःपिप्पली पिप्पलीमूलं चव्यचित्रकनागरम् । मरिचं दीप्यकं चैव वृक्षाम्लं चाम्लवेतसम्॥२॥अजमोदाऽजगन्धा च कपिकच्छेति कर्षिका । अत्यन्तसुविशुद्धायाः शर्करायाश्चतुःपलम्॥ ३ ॥ चूर्ण सदा हितं पुंसां परमं रुचिवर्द्धनम् । प्लीहकासामयार्शासि श्वासं शूलं च सज्वरम् ॥ ४॥ निहन्ति दीपयत्यग्निं बलवर्णकरं परम् । वातघ्नं लोचनं. हृद्यं कण्ठजिह्वाविशोधनम् ॥५॥ १-छोटी इलायची, केशर, भांगरा, तालीसपत्र, वंशलोचन, दाख, अनारदाना, धनियां, दोनों जीरे ये आठ आठ टंक लेवे. पीपल, पीपलामूल, चव्य, चित्रक, सोंठ, मिरच, अजमायन, संतडीक, अमलवेत, अजमोद, असगंध, कौंच के बीज इन औषधियोंको चार चार टंक लेवे, मिश्री ४ पल डाले । यह चर्ण रुचिकर है, तापतिल्ली, खाँसी, बवासीर, श्वास, शूल, और ज्वर इनको नाश करे, अग्निको बढावे, वर्ण उत्तम करे, वादी, नेत्ररोग, हृदय, और कंठके रोगको नष्ट करे ॥ १-५॥
त्रुटिलवङ्गविडंगकटुत्रिकं घनशिवाशिवपत्रजकं समम् । त्रिगुणिता त्रिवृता च सिता समा अदन आम पतिष्यति कामतः॥१॥ २-छोटी इलायची, लौंग, वायविडंग, सोंठ, मिरच, पीपल, नागरमोया, आंवले, हरड, तमालपत्र इन सब औषधियोंको बराबर लेय और सच औषधियोंसे त्रिगुण निसोथ डाले और सबके समान मिश्री मिलाते । इस चर्णको खानेसे आम झडकर गिरपडे ॥ १ ॥
Aho! Shrutgyanam