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(७२) योगचिन्तामणिः। चूर्णाधिकार:सन्निपातातुरं चैव विस्फोटकभगन्दरम् । नेत्ररोगं शिरोरोगं कर्णमन्याहूनुग्रहम् ॥१०॥ हृद्रोगं कण्ठरोगं च जानुजंघागतं तथा। सर्वरोगविनाशाय चरकेण प्रभाषितम् ॥ ११ ॥ केशर, कस्तूरी, चातुर्जात, त्रिफला, अकरकरा, अभ्रक, धनियाँ, अनारदाना, मिरच, पीपल, अजमायन, तंतडीक, हिंगुल, कपूर, तुंबरू, तगर, नेत्रवाला, लौंग, जावित्री, मँजीठ अथवा लजाल, पोहकरमूल, प्रियंगु, कमलगट्टा, वंशलोचन, कचूर, तालीसपत्र,चित्रक, छड, जायफल, खस, खरेटी, गंगेरनकी छाल, सोनामक्खी , कृठ, पीपलामूल, उडद ये सब औषधि बराबर लेवे तथा सबकी बराबर मोचरस और सबकी बराबर मिश्री मिलावे, इस चूर्णको प्रात:काल, सायंकाल और भोजन के अन्तमें वा रात्रिमें खाय तो वाजीकरण करता है. अजीर्णको तत्काल नष्ट करे, मन्दाग्निको प्रबल करे, अस्सी प्रकारके वातरोग, चालीस प्रकारके पित्तरोग, बीस प्रकारके कफरोग, सूखी रद्द, वमन, अरुचि, पांचप्रकारकी संग्रहणी, अतीसार, ग्यारह क्षयरोग, श्वास, पांचप्रकारकी खांसी, उदररोग, मूत्रकृच्छू और गलग्रह इन सबका नाश करे । इस चूर्णके खानेसे वंध्याके पुत्र होय, सन्निपात, विस्फोटक, भगंदर, नेत्ररोग, शिरके रोग, कर्णरोग, मन्यानाडीका जकडना, हनुग्रह, हृदयरोग, कंठरोग और जानुके रोग इन रोगोंसे आदि ले सर्वरोग नष्ट करनेके निमित्त चरकऋषिने कहा है ॥१-११॥
लवङ्गादि चूर्ण। लवंगक कोलमशीरचदनं नतांसनीलोत्पलकष्णजीरकम् । एलासकृष्णागरनागकेशरं कणं सविश्वानलदं सहांबुना ॥ १ ॥ कर्पूरजातीफलवंश. लोचना सितार्द्धमात्रासममुक्ष्मचूर्णितम् । सरोचनं
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