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________________ प्रथमः] माषाटीकासहितः। (६३) कटेरी पाफ । समूलपत्रान्वितकण्टकार्यास्तुलां जले द्रोणपरिप्लुतां च । रीतकीनां च शतं निदद्यादत्त्वाऽत्र पक्त्वा चरणावशेषम् ॥१॥ गुडस्य दत्त्वा शतमेतदग्नौ सुपक्कमुत्तार्य ततः सुशीते। कटुत्रिकं च त्रिफलापमाणं पलानि षट्पुष्परसानि तत्र॥२॥ तुगाक्षीरी च गायत्री भाी कर्कटशृङ्गिका । कट्फलं पुष्करं वासा क्षिपेदर्द्धपलोन्मितान् ॥ ३॥ क्षिपेञ्चतु तफलं यथाग्नि प्रयुज्यमानो विधिनाऽवलेहः। वातात्मकं पित्तकफोद्भवं च द्विदोषनं कासमपि त्रयं च ॥ ४ ॥ क्षतोद्भवं च क्षयनं च हन्यात् सपीनसंश्वासमुरक्षितं च । यक्ष्मागमेका दशमुग्ररूपं भृगूपदिष्टं हि रसायनं च ॥५॥ कटेरीका पञ्चांग १०० पल ४०९६ टंक पानीमें हरड १०० डालकर औटावे, जब चतुर्थाश जल शेष रहे तब उतारलेवे, उस जलको छानकार १०० पल गुड डालकर औटावे, पीछे उतार शीतल कर ३ पल त्रिकुटा ६ पल शहद डाले और वंशलोचन, खैरसार, काकडासिंगी, कायफल, पुहकरमूल, अडूसा ये औषधि आठ आठ ठंक डाले और १ पल चातुर्जात डालकर अवलेह बनावे । इसमेंसे मनुष्यकी अग्नि देखकर खानेको देवे तो वात, पित्त, कफ, द्विदोष, त्रिदोष हनके विकारसे उत्पन्न खांसी, उरक्षितकी खांसी, क्षय, पीनस, श्वास, उरक्षित और ग्यारह प्रकारकी यक्ष्माको दूर करे. यह अवलेह भृगुऋषिने कहां है ॥ १-५ ॥ टाव५०० पल गुड डाल और वंशलोच आठठक 8 अग्नि Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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