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योगचिन्तामणिः । [ पाकाधिकारः
तानि ॥ ३ ॥ कपित्थमाण्डूरमयोदशांशा समस्तचूर्णार्द्धमिता सिता च । एतैश्च पथ्या परिपूरणीया सूत्रेण युक्ता परिवेष्टनीया ॥ ४ ॥ स्थाल्यां ततस्तकमधो निधाय तृणानि मुक्त्वोपरि तां विमुच्य | मन्दाग्निना याममथो विपाच्य विहाय सीतां मधुनिक्षिपेच्च ॥ ५ ॥ सा सेव्यमाना ग्रहणीप्रमेहश्वासापहा अग्रिकरा सवृष्या । पाण्डवामवातापहरी च पुष्टिप्रदायिका मध्वभया प्रदिष्टा ॥ ६ ॥
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पकी बडी हरड ५ पल लेवे, उनको प्रस्थभरम गौके मूत्रमें औटावे तदनन्तर कांजी दूध और छाछ इनको एक एक प्रस्थ लेकर इनमें पृथक २ औटावे जब औट जावे तब उतारकर उनकी गुटली निकालडाले | पीछे सोंठ, मिरच, पीपल, अजवायन, इन्द्रयव, नागरमोथा, हाऊबेर, आनारदाना, अमलबेंत, धावडाके फूल, जीरा सफेद, जीरा काला, पीपल, जटामांसी मोचरस बेलगिरी, 'काला' नोन, सेंधानोन, पाषाणभेद, आमकी गुठली, जामुनकी मुटली, अतीस, पाढ, लौंग, जायफल, इलायची, नागकेशर, पत्रज इन सबको बराबर लेवे कैथ, मंडूर दशांश लेवें, सब चूर्णसे आधी मिश्री लवे इन सबको कूट पीस चूर्ण कर उन हरडोंमें भरे पीछे उन हरडोंको डोरेसे बांध देवे पीछे मिट्टीके पात्र में छाछ भरकर डरडोंको बांधकर उसमें लटका देवे पीछे मन्दाग्निसे उनको पचावे जब पकजावे ar उतारकर शीतलकर शहदमें डुवोदेवे. इनके खानेसे संग्रहणी, श्वास, खांसी, प्रमेद दूर होवे और जटरानिको बढावे, वृष्य, है,
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Aho ! Shrutgyanam
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