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________________ ( ४४ ) योगचिन्तामणिः [ पाका किधार: धतूरे के बीज, सफेद मुसली, खुरासानी अजमायन, अहिखराके चीज, उटंगनके बीज, कौंच के बीज इन सबको बराबर लेवे और पृथक् २ कूट पीसकर चूर्ण करे, कपासके बीजोंको पीसे दूधकी सात भावना देवे, पीछ उसको धूपमें सुखाकर नारियल के गोलेमें भर देवे, तदनन्तर गोलेको बत्तीस गुणे दूधमें मन्दाग्निसे पचावे जब दूधका खोवा होजाय तब उसको घीमें भूनकर सब औषधि मिलावे | फिर ये औषधी और डाले -- इलायची, नागकेशर, पत्र, लौंग, जावित्री, जायफल, ये सब औषधी आठ आठ टंक लवे और ६४ टंक खांड छेय, सबको मिलाकर पाक बनावे, इस नारियल पाकके खानेके पीछे दूध पीवे तो वात विकार, प्रमेह, बलहानि, क्षय य सब नष्ट होय. बृद्ध मनुष्य भी तरुण होजाता है || १ || ५ | गोखरूपाक १ - २ । प्रस्थं गोक्षुर सूक्ष्मचूर्णमृदितं दुग्धाढके पाचितं जावित्री च लवङ्गलोधमरिचैः कर्पूरकं शाल्मली । अब्दं शोषसुवर्णबीजरजनीधात्रीकणा केशरं चातुजतमथाहि फेनक - मलं कच्छू कुबेराख्यकम् ॥ १ ॥ तत्तुल्या च सिता तदर्धविजया प्रस्थद्वयं गोघृतं प्रोक्तं वैद्यवरेण निर्मितमिदं मन्दामिना पाचयेत् । प्रातः सेव्यमिदं सुमानमशितं व्याधेश्च विध्वंसनमंशांशैर्विहितं प्रमेहशमनं सङ्गेऽङ्गनाद्रावकम् | क्षीणे पुष्टिकरं क्षये क्षयहरं वाजीकरं कामिनामेतद्गर्जितमानिनीमृगरिपुर्वाता जित्त्वौषधम् ॥ २ ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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