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________________ प्रथमः] भाषाटीकासहितः। (३३) घनीभूतं तदुत्तार्य खण्डायाः पलविंशतिः। चातुर्जातं लवङ्गं च व्योषमाकल्लकं तथा ॥२॥ जातीफलं जातिपत्री ह्यश्वगन्धा पुनर्नवा । नागार्जुनीस्वगुप्तानां सबलानां पलार्द्धकम् । सर्व संचूर्ण्य संमिश्य पलार्द्धगुटिका भवेत् ॥३॥ भांगका रस १६-१६ टंक ले और दूध तथा घृत ८०८ टक लेना चाहिये, इन सबको मिलाकर धीरे धीरे मन्दाग्निसे पाचन करै- जब गाढा होजाय तब चूल्हेसे उतार लेय पीछे मिश्री बीस पलकी चासनी कर उसमें पूर्वोक्त भांगके रसका खोवा डाले और य औषधी और डाले-चातुर्जात, लौंग, सोंठ, मिरच' पीपल, अफरकग, जायफल, जावित्री, असगंध, सोंठ, दुद्धी, पौंचके बीज, बाला (वरिआरा) ये सब औषधि आठ आठ टंक लेय कूट पीस कपडछान कर मिलाय लड्डू बना लेये ॥ १-३ ॥. प्रातः प्रातः प्रभुक्ता हि धातुपुष्टिबलप्रदा। प्रमेहव्याधिशमनी सर्वातीसारनाशिनी ॥४॥ श्वासं कासं तथा पाण्ढयं स्त्रीणां दुःप्रदरं तथा। नाशयत्येव वृष्याऽऽशु वीर्यस्तंभविधायिनी ॥५॥ : प्रातःकाल इस विजयापकको सेवन करे तो धातुपुष्टि होय, बल करे, प्रमेह जाय, सब प्रकारके अतीसार, श्वास, खांसी, नपुंसकता, स्त्रियोंके प्रदरादिरोगोंको नाश करे और वीर्यका स्तंभन करता है ॥ ४ ॥५॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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