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________________ (१८) योगचिन्तामणिः। [पाकाधिकारःमरीचीकी एक राई, तीन राईका एक सरसों, आठ सरसोंका एक यह और चार यवोंकी एक गुंजा (रत्ती) कहते हैं। छः रत्तीका एक मासा, इसको हेम और धान्यकभी कहते हैं ॥ १-५ ॥ मापैश्चतुर्भिः शाणः स्याद्धरणः स निगद्यते । टंकः स एव कथितस्तद्वयं कोल उच्यते ॥६॥ क्षुद्रभो वटकश्चैव द्रंक्षणः स निगद्यते । कोलद्वयं च कर्षः स्यात्सा प्रोक्ता पाणिका बुधैः ॥७॥ अक्षः पिचुः पाणितलं किंचित्पाणिश्च तिन्दुकम् । बिडालपदकं चैव तथा षोडशिका मता ॥ ८ ॥ करमध्यं हंसपदं सुवर्ण कवलग्रहम् । उदुम्बरं च पर्यायैः कप एवनिगद्यते ॥ ९॥ चार मासेका एक शाण उसको धरण तथा टंक भी कहते हैं. दो शाणका एक कोल उसको शुभ वटक द्रंक्षण कहते हैं. दो कोलका एक कर्ष कहाता है, उसको पाणिका अक्ष, पिचु, पाणितल, किंचि. त्पाणि, तिन्दुक, विडालपदक, पोडशिका, करमध्य, हमपद, सुवण कवलग्रह और उदुम्बर कहते हैं अर्थात् ये भी कर्षके नाम हैं ॥६-९॥ स्यात्कषाभ्यामधपलं शक्तिरष्टमिका तथा। शुक्तिभ्यां च पलं ज्ञेयं मुष्टिरानं चतुर्थिका ॥१०॥ प्रकुञ्चः षोडशी बिल्वं पलमेवात्र कीर्त्यते । पलाभ्यां प्रमृतिज्ञैया प्रसृतश्च निगद्यते ॥ ११ ॥ प्रमृतिभ्यामंजलिः स्यात्कुडवोऽर्धशरावकः । Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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