SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथमः ] भाषाटीकासहितः। (१७) कहते हैं, जैसे पूर्वके देश । इन देशोंमें रोग बहुत होते हैं और जिसमें दोनों देशोंके लक्षण मिलें उसको साधारण देश कहते हैं जैसे मध्य देशादि ॥१॥ औषधोंके ( मागध ) मानकी परिभाषा । न मानेन विना युक्तिव्याणां ज्ञायते क्वचित् । अतः प्रयोगकार्यार्थ मानमत्रोच्यते मया ॥१॥ त्रसरेणुबुधैः प्रोक्तस्त्रिंशद्भिः परमाणुभिः । त्रस. रेणुस्तु पर्याय नाना वंशी निगद्यते॥२॥ जालान्तरगते भानौ यत्सूक्ष्म दृश्यते रजः । तस्य त्रिंशत्तमो भागः परमाणुः स उच्यते॥३॥षड्वंशीभिर्मरीचिः स्यात्ताभिः पड्भिस्तु राजिका । तिसृभी राजिकाभिश्च सर्षपः प्रोच्यते बुधैः ॥ ४॥ यवोऽष्टसर्षपैः प्रोक्तो गुंजा स्यात्तञ्चतुष्टयम् । षभिस्तु रक्तिकाभिः स्यान्माषको हेमधान्यकौ ॥ ५॥ विना मान ( तोल) के द्रव्य ( औषधी) की युक्ति नहीं जानी जाती इसीस प्रयोगके कार्यके साधनार्थ मान (तोल ) को कहता हूं-तीस परमाणुका एक त्रसरेणु, इसको वंशीभी कहते हैं. जालांतरगत सूर्यकी किरणमें जो छोटे २ रजके कण उडते हैं उनके हरएकके तीसवें हिस्सेको परमाणु कहते हैं । छः वंशीकी एक मरीची, छः Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy