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________________ सप्तमः] भाषाटीकासहितः। (२९९.) रक्ताभिष्यंदरौद्रायां पूतिनाणस्य देहके ॥३॥ यकृत्प्लीहविसर्पेषु विधौ पिटिकोद्गमे। कर्णोष्ठघाणवक्रांणां पाके दाहे शिरोरुजि ॥४॥ उपदंशे रक्तपित्ते रक्तस्रावः प्रशस्यते ॥५॥ सूजन, दाह, अंगका पकना, देह का लाल होजाना इनमें रुधिर निकलवावे । वातरक्त, कोढ, पीनस, दुष्टवात, पांडुरोग, श्लीपदविषदुष्ट इन करके रुधिर दुष्ट होवे तो निकलवावे और गांठ, अर्बुद, अपची, क्षुद्ररोग, रक्त व्रण, स्तनरोग, स्वरभंग, रुधिर विकार होवे तो रुधिर निकलवावे, कान, होंठ, नाक, मुँह यह सब पकजा अथवा इनमें दाह होवे वा, शिरमें दरद होवे अथवा यकृत, प्लीहा, विसर्प विद्रधि, फोडे, उपदंश, रक्तपित्त इनमें भी रुधिर निकलवावे ॥ १-५॥ ___ रक्तस्रावे अयोग्याः। न कुर्वीत शिरामोशं कृशस्यातिव्यवायिनः । क्लीवस्य भीरोगर्भिण्याः सूतिकापाण्डुरोगिणाम् ॥ १॥ दुर्चल, अतिमैथुन करनेवाला, नपुंसक, गर्भवाली स्त्री, भयभीत, पांडुरोगी इनका रक्त न निकाले ॥ १ ॥ . रक्तस्रावे वानि । व्यायाममैथुनकोशीतस्थानप्रवातकान् । एकाशनं दिवा निद्रां क्षाराम्लकटुभोजनम् । अभिजल्पं जलं भूरि त्यजेदाबलदर्शनात् ॥१॥ कसरत, स्त्रीसंग, क्रोध, शीत और वातवाले स्थानमें बैठना एक बार भोजन, दिनमें सोना, खारा खट्टा कडवा भोजन, बहुत बोलना. Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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