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सप्तमः
भाषाटीकासहितः। (२८९)
अग्निदाहे लेपः। अग्निदग्धे तुगाक्षीरीप्लक्षचन्दनगैरिकैः । सामृतैः सर्पिषा स्निग्धैगलेपं कारयेद्भिषक् ॥ १॥ यवान् दग्ध्वा मषी कार्या तिलतैलेन संयुता। अयं सर्वाग्निदग्धेषु प्रलेपो व्रणलेपनः ॥२॥ निम्बपत्राणि सुरसा कुष्टं धात्रीफलानि च। . ईषदग्धे यथालाभे लेपनं भिषगुत्तमम् ॥ ३॥ कुष्ठं मधुकयष्टी च चन्दनैरण्डपत्रकैः ।
मध्ये दग्धे हितो लेपो दुग्धेन परिपेपितः ॥४॥ तवारखीर, पाखर, चन्दन, गेरू, गिलोय, घीसे चिकनाई कर वैद्य लेप करे तो अग्निका जला अच्छा होवे अथवा जलाये यव तिलके तेलमें मिलाकर लगानेसे अग्निका जला और फफोला अच्छा होवे । नींवके पत्ते तथा तुलसीके पत्ते, कूठ, आमला इनका लेप करनेसे थोडा जला हो वह अच्छा होवे. कूर, महुआ, मुलहठी, चन्दन इनका लेप दूधमें मिलाकर लगालेने मध्यम जला अच्छा होवे यह उत्तम लेप है ॥ १-४॥
हस्तपाददाहे लेपः। बदरीपल्लवलेपः श्रीखण्डारिष्टफेनसंयुक्तः । दातव्यः पदलेपः शाम्यति रुग्दाहकं तस्य ॥ सैन्धवं चैव खडिकालेपो दाहस्य नाशनः ॥ १॥ बेरके पत्तोंका लेप पैरोंपर करे वा चन्दन, नींबकी छालका लेप करनेसे पैरोंका दाह दूर होवे अथवा निमक और कलई, खडिया इनका लेप करनेस पैरोंका दाह नष्ट होवे ॥ १॥
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