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________________ ( २८४ ) योगचिन्तामणिः । [ मिश्रा धिकारः जाय । पुरानी बेलगिरी, अरणी, जमालगोटा, चीता, कनेरकी जड, कबूतर और गीदडकी बीठ लेप करनेसे गंडमाला दूर हो जाय । दूर्वा, हरड, सैंधानोन, पमार, थूहर, हलदी इनको महेमें मिलाकर लेप करे तो खुजली दाद दूर होवे । पमाड, सरसों, तिल, कूठ, बावची, दोनों हलदी इनको ममें मिलाकर लेप करनेसे विचर्चिका और सौ वर्षका दाद तथा खाज दूर होवे ढककें बीज, पित्तपापडा इनको नींबू के रस में लेप करनेसे दाद दूर होवे चिरमिठी, देवदारु, चीता, पाडके बीज, इनका लेप करनेसे दाद दूर होवे. पमाडके बीज, आमलेका रस, सज्जी हलदी इनको सरसोंके तेलमें घोलकर लेप करे तो दाद दूर होवे ॥ १-१० ॥ सिध्मरोगे लेपः । दावमूलकबीजानि तालकं सुरदारु च । ताम्बूलपत्रं सर्वाणि कार्षिकाणि पृथक्पृथक् ॥ १ ॥ शङ्खचूर्ण शाणमात्रं सर्वाण्येकत्र कारयेत् । लेपोऽयं वारिणा पिष्टः सिध्मानां नाशनं परम् ॥ ३ ॥ धात्री सर्जरसश्चैव यवक्षारश्च चूर्णितः । सौवीरेण प्रलेपोऽयं प्रयोज्यः सिध्मनाशकः ॥ ३ ॥ सगन्धकं यवक्षारचूर्णपिष्टं निहन्ति तान् । अपामार्गरसात्विष्टमूलिकाबीज लेपतः ॥ ४ ॥ सर्वाङ्गसम्भवं सिध्मं नाशयत्यपि वेगतः ॥ ५ ॥ अनुभूतोयं लेपः ॥ दारुहलदी, मूली के बीज, हरताल, देवदारु, पान इन सबको जुदी जुदी चार चार टंक और शंखका चूरा १ टंक Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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