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________________ सप्तमः ] भाषाटीकासहितः । (२६१) कर्ष भक्षण करे। घी, शहत इनके साथ बाबचीका चूर्ण ४ टंक लेवे तो संपूर्ण कोढों का नाश करे । यह महातालकेश्वर रस है ॥ १-५ ॥ अतिसारे रसः । लवंगमहिफेनं च हिंगुलं शाल्मलीरसः । सितासमा गुटी ज्येष्ठा जलपीताऽतिसारजित् ॥ १ ॥ लवंग, अफीम, हींगल, सेमल, मोचरस, मिश्री इन सबको बराबर लेकर बेर के प्रमाण गोली बनावे | एक गोली जलके साथ लेवे तो अतीसार दूर होवे ॥ १ ॥ अतिसारे--आनन्दभैरवरसः । दरदं वत्सनागं च मरिचं टंकणं कणा । चूर्णयेत् क्रमभागेन रसो ह्यानन्दभैरवः || २ || गुंजैका वा द्विगुंजा वा बलं ज्ञात्वा प्रयोजयेत् । मधुना लेहयेच्चानु कुटजस्य फलत्वचः ॥ ३ ॥ चूर्णितं कर्षमात्रं तु द्विदोषोत्थातिसारजित् । मध्याह्ने दापयेत्पथ्यं गोराज्यं तत्रमेव च ॥ ४ ॥ पिपासायां जलं शीतं विजयां निशि दापयेत् ॥ ५ ॥ शिंगरफ, तेलिया मीठा, मिरच, सुहागा, पीपल इन सबको बराबर लेवे और चूर्ण करे, इस आनन्दभैरव रसको एक वा दो रत्ती बलावल देखकर शहद में चटादेवे, वुडेकी छाल वा कुडेके फलका चूर्ण एक कर्षमात्र देवे तो द्विदोषज अतीसार दूर होवे । मध्यान्हमें गौका दूध तथा घृत और मट्ठा लेवे प्यास लगे तो टंढा जल पीवे या रात्रिको भांग पीव ॥ २५ ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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