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________________ सप्तमः ] भाषाटीकासहितः । ( २५९ ) बीजपूररसैर्भाव्यो रसो ह्युदयभास्करः ॥ २ ॥ पारदं गन्धकं व्योषं द्वौ क्षारौ लवणानि च । टंकणं चेति तुल्यानि जैपालं सकलैः समम् ॥ ३ ॥ भावना बीजपूरस्य सूक्ष्मं चूर्ण विचूर्णयेत् । संग्राह्यं रक्तिकायुग्मं वातं सामं विनाशयेत् ॥ ४ ॥ गोदुग्धं केवलं पथ्यं देयमुष्ट्रीपयोऽथवा । अन्नं च वर्जयेत्तावदामशोफं निवारयेत् ॥ ५ ॥ पारा, शुद्ध गंधक, सोंठ, मिरच, पीपल, तीनों नोन, मिश्री, बडी इलायची के दाने, शुद्ध रसकपूर इन सबको बराबर ले शुद्ध जमाल गोमें मिलाकर बिजौरे के उसकी तीन भावना देवे । यह उदयभास्कर रस है । पारा, गंधक, सोंठ, मिरच, पीपल, रुज्जीखार, जवाखार, तीनों नोन ये सब बराबर लेवे, इन सबके बराबर सुहागा, जमालगोटा बराबर ले और चूर्ण कर बिजोरके रसकी भावना देवे | इसको दो रत्ती प्रमाण मात्रा देव तो संपूर्ण बातको नाश करे । और केवल गोदुग्ध या उँटनीका दूध पथ्यमें देवे। जबतक आमकी सूजन म जाय तबतक अन्न न खाय ॥ १-५ ॥ वातकासे भूतांकुशो रसः । + शुद्धसूतस्य भागैकं द्विभागं शुद्धगन्धकम् । भागत्रयं मृतं ताम्रं मरिचं दशभागकम् ॥ १ ॥ मृताभ्रकं चतुर्भागं भागमेकं विषं क्षिपेत् । भूताङ्कुशस्य भागैकं सर्वमग्लेन मर्दयेत् ॥ २ ॥ यामं भूतांकुशो नाम माषैकं वातकासजित् । अनुपानं लिहेत्क्षौद्रं विभीतकफलत्वचा ॥ ३ ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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