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________________ सप्तमः] भाषाटीकासहितः। (२४३) सेवयेद्धीमान्पाचितं विधिपूर्वकम् ॥ ६॥ गंधकं माषयुग्मं च नागवल्लीदलैः सह । खादेत् पारद: संग्रस्तो दोषशान्तिस्तदा भवेत् ॥ ७ ॥ पारा देहकी शुद्धि करता है और नानाप्रकारके रोगोंके नाश करनेको समर्थ है. पुष्टिकारक, मृत्युका हर्ता, निश्चय कल्पकी उमर करता है, पारा संपूर्ण रोगोंको पार करता है. शोष, यक्ष्मा, दाह इनको मेघके समान शांत करता है, पारा नागरपानके साथ सेवन करनेसे संपूर्ण रोगोंको दूर करता है. मूञ्छित पारा रोगका नाश करता है, पारेकी गोली मुखमें रखनेसे आकाशमार्गमें होकर चले, नीला पारा सर्व सिद्ध करता, निश्चल मुक्तिका देनेवाला है, चांदीमें ८० गुण, कांतिसारमें ४० गुण, वंगमें ६४ गुण, ताँबेमें ३२ गुण, सुवर्णमें १००, अभ्रको १००० गुण, हीरामें १००००००० गुण, और पारेमें अनगिनत गुण जानो, पर इन सबकी भस्ममें गुण है। और संस्कारहीन पारा खाय तो अवगुण करता है, देहका नाश, कोढको करे । पारा खानेसे जो विकार होवें तो दो महीने पानमें शुद्ध गंधकका सेवन करे तो पारा खानेके सर्व रोग शांत होवें ॥ १-७ ॥ पारदविकारशान्तिः। द्राक्षाकूष्मांडखण्डा च तुलसी शतपुष्पिका । लवङ्गतजनागं च गन्धकेन समांशकः ॥३॥ कर्षमात्रपयोभुक्तं सर्व सर्व पृथक् पृथक् । सर्वयोगान्तरासाध्यसूतदोषविकारनुत् ॥२॥ नागवल्लीरसं प्रस्थंगराजरसं समम् । तुलसीरसप्रस्थं च छागीदुग्धं समांशकम् ॥३॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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