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________________ (१९६) योगचिन्तामणिः। ..[तैलाधिकारः-- वातपित्ते क्षये दाहे गुर्विणीपुष्टिदं मतम् । कासवासासृग्विकारे कण्डूशूलभ्रमेषु च ॥५॥ २-लाखका रस १०२४ टंक, पानी २५६ पल डालकर काढा करे, मीठा तेल १६ पल डाले, गायका महा १६४ पल डाले और विधिपूर्वक पकावे फिर सौंफ, असगंध, हलदी, देवदारु, कुटकी, संभालू, मुलहठी, झूठ, मोथा, रक्तचन्दन, गस्ना, मूर्वा इन सबको चार चार टंक ले पीसकर डाले, फिर मन्दाग्निमें पकावे, इसके मर्दन करनेसे संपूर्ण विषम ज्वर न श होवे. वायु, पित्त क्षय, दाहको हित है और खांसी, श्वास, रुधिर विकार, खाज, शूल भ्रमादिकों को दूर करता है. गर्भिणीको हित है ॥ १ ॥५॥ ___ ददुमण्डलपामावि चर्चिकादौ मरिचादितलम् । मरिचचंदनदारुनिशाद्वयं जलदमेघशिलालशकृद्रसैः। त्रिवृतयाऽश्वहरोकपयोविपैः सुरभिमूत्रयुतं विप चेद्भिषक् ॥१॥ कटुकतैलमिदं मरिचाह्वयं कठिनचर्मदलारसकापहम् । बहुलमण्डलसिध्मविचचिंकाप्रवरकुष्ठकिलासविसर्पजित् ॥ २॥ मिरच, चन्दन, दोनों हलदी, देवदारु, खस, मोथा, मैनशिल, हरताल, गोवरका रस, निसोत, असगंध, आकका दूध, तेलिया मीठा इनको गोमूत्रमें औटावे, फिर कडवा तेल डालकर उतार लेवे. यह तेल चर्मदल, दाद, बडे चकत्ते, कोढ, पामा, फोडा, विचर्चिकादि संपूर्ण रोगोंको दूर करे ॥ १-२॥ ___ वृद्धमरिचादितैलम । मरिचं त्रिफला दन्तीक्षीरमाकै शकृद्रसैः। देवदारु हरिद्रे रे मांसीकुष्ठं सचन्दनम् ॥ १ ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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