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________________ ( १९२ ) योगचिन्तामणिः । [ घृताधिकार: पांडुरोग, प्रमेह, अर्श, सूजन, गण्डमाला, कृमिरोग, गांठ, अरुचि, खांसी, शोष, उदावर्त्त, मृगी, और उदररोगादिकों को दूर करे॥१-४॥ संग्रहणीविकारे कल्याणगुडः । पाठाधान्यजवान्यजाजिहपुषाचव्यनिसिन्धूद्भवैः सश्रेयस्यजमोद की रिपुंभिः कृष्णाजटासंयुतः । सव्योषैः सफलत्रिकैः सत्रुटिभिस्त्वग्यत्नजैरौषधैः प्रत्येकं पलिकैः सतैलकुडवैः सार्द्धं त्रिवृन्मुष्टिभिः॥१॥ सर्वैरामलकीरसस्य तुलया सार्द्धं तुलाई गुडं सम्पाच्यो भिषजावलेहवदयं प्राग्भोजनाद्भुज्यते । ये केचिद्रहण गदाः सगुदजाः कासाः सशोफामयाः सश्वासं श्वयथुं शिरोदररुजः कल्याणकस्तान् जयेत् २ नागपुरीययतिवर श्रीहर्ष कीर्ति संकलिते । वैद्यकसारोद्धारे पञ्चमवृताधिकारोऽयम् ॥ ५ ॥ पाढ, धनियां, अजमायन, जीरा, कबाबचीनी, चव्य, सैंधानोन. पीपल, अजमोद, वायविडंग, पीपलामूल, सोंठ, मिरच, पीपल, त्रिफला, इलायची, तज, तेजपात, नागकेशर यह सब बराबर अर्थात् एक एक पल लेवे । तेल ६४ टंक, निसोथ १६ टंक, आंवलोंका रस १६० टंक, गुड १००० टंक डालकर अच्छे प्रकार औटावे फिर औषधियोंको डालकर अवलेह बनावे, भोजनके प्रथम चार टंक खावे । यह गुड-संग्रहणी, उदररोग, खांसी, कंठ सूखना, श्वास, कंठसूजन आदिरोगों का नाश करे ॥ १ ॥ २ ॥ इति श्रीमाथुरदत्तरामचौबेकृतमाथुरी मञ्जूषा भाषाटीकायां घृताधिकारः पञ्चमोऽध्यायः ॥ ५ ॥ Ahot Shruigyanam:
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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