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- चतुर्थ ] भाषाटीकासहितः। (१५७)
लहसन, पीपलामूल, शुद्ध कुचला, सोंट, भारंगी, पोहकरमूल, चिरायता, अकरकरा इन सबको बराबर लेकर अष्टावशेष काढा करके पीनेसे वायुरोग, धनुर्वायु, मृगी, सन्निपात आदि सम्पूर्ण दोषोंको दूर करें और ऊपरसे सोंठ, मिरच, पीपल टंक २ डालकर पीवे तो अस्सी प्रकारके वातजन्य रोगोंको नाश करता है ॥ १-३ ॥
शिरोव्यथायां श्रेष्ठादिक्वाथः। श्रेष्ठानिम्बपटोलमुस्तरजनीत्रायन्तिहेमामृताः कृत्वा षड्गुणवारिणा विनिहितं षष्ठांशपीता निशि। घूशंखाक्षिशिरोरुजां बहुविधां कर्णास्यनासागदं नक्तान्ध्यं निमिरं च काचपटलंदैत्यान्यथा केशवः॥ त्रिफला, नींबकी छाल, पटोल, मोथा, दोनों हलदी, त्रायमाण, चिरायता, गिलोय इनका काढा छः गुण पानीमें करे जब एक हिस्सा रहजाय तब पीव तो भौंहका रोग, (शंख) कनपीके रोग, आंखरोग, मस्तकगेग, रतौंधा, तिमिर, मोतियाबिन्दु काचविन्दु ये सम्पूर्ण रोग नाश होवें ॥ १॥
पथ्यादिक्वाथः । पथ्याक्षधात्रीभूनिम्बैनिशानिम्बामृतायुतैः । कृतः क्वाथः षडङ्गोऽयं सगुडः शीर्षशूलहा ॥१॥ भूकर्णशंखशूलानि तथाऽर्द्धशिरसो रुजम् । सूर्यावर्त शंखकं च चक्षुःपीडां व्यपोहति ॥२॥ हरड, बहेडा, आंवला, चिरायता, हलदी, नींवकी छाल, गिलोय इनको बराबर ले काढा करे षष्ठांश पानी रहे तव उतारलेवे, गुड
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