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________________ (१४२) योगचिन्तामणिः। [ गुटिकाधिकारःचित्रकस्य पला स्याद द्विगुणं मरिचं भवेत् । नागरं पिप्पलीमूलं त्वगेला पत्रकुंकुमम् ॥३॥ शाणोन्मितं तदेकैकं चूर्णयेत् सर्वमेकतः। ततस्तत्प्रक्षिपेच्चूर्ण पक्कखण्डे च तत्समे ॥ ४ ॥ मोदकान्पलिकान्कृत्वा प्रयुंजीत यथोचितम् । हन्युः सर्वाणि कुष्ठानि त्रिदोषप्रभवामयान्॥५॥ शिरोक्षिभुगतान्रोगान्हन्यात् पृष्ठगदामपि । भगन्दरप्लीहगुल्मान् जिह्वातालुगलामयान् ॥ ६॥ प्राग्भोजनस्य देयं स्यादधकायस्थिते गदे।। भेषजं भक्ष्यमध्ये च रोगे जठरसंस्थिते । भोजनस्योपरि ग्राह्यमूर्व जन्तुगदेषु च ॥ ७॥ त्रिफला ६ पल, भिलावा ४ पल, बावची ५ पल, वायविडंग ४ पल, सार १ पल, निसोथ १ पल, गूगल १ पल, शिलाजीत १ पल, पोहकरमूल १ पल, चीता आधा पल, मिरच १ पल, सोंठ, पीपल, मोथा, तज, तेजपात, इलायची, केशर, ये एक एक पल ले इन सबका चूर्ण कर और सबकी बराबर खांडकी चासनी कर १६ टंक प्रमाण लड्डू बना लेवे । इसके खानेसे कोढ, त्रिदोष, भगंदर, प्लीहा, गोला, जिह्वारोग, तालुरोग, गलरोग, आंखरोग, भौंहरोग, पीठरोग, कानरोगादिकोंका नाश करे, भोजनसे पहिले सेवन करे तो अर्दागरोग जाय और मध्यमें खावे तो उदररोग जाय और पीछे खाय तो कमरके रोग दूर होवें ॥१-७॥ भल्लातकांस्तिलैः सार्धमथवा शुण्ठितण्डुलैः । खण्डेन गुटिका कार्या कुष्ठरोगनिवृत्तये ॥१॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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