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________________ (१४०) योगचिन्तामणिः। [गुटिकाधिकार:पारदं शीसकं तुल्यं तयोगुिणमञ्जनम् । ईषत्कपूरसंमिश्रमानं नयनामृतम् ॥२॥ शीसेको त्रिफलामें ३० बार, भांगरेक रसमें १० बार, सोंठके काढे १० बार, शहदमें १० बार, घीमें १० बार, बकरीके दूधमें १० बार, गोमूत्रमें १० घार बुझावे । यह अञ्जन गरुडके समान नेत्रोंकी ज्योतिको करता है. पारा, शीशा बराबर इनसे दूना सुरमा और थोडासा कपूर मिलाकर अंजन करे तो नेत्रोंको यह अंजन अमृतके तुल्य है ॥ १-२ ॥ __वाले कुत्तेके काटनेपरं गोली। तुम्बीगिरं मालवकेक्षुहिङ्गलं नेपालमध्यं मरिचानि टकणम् । भागैः समानगुटिका विधेया विषं शुनो हन्ति सुतप्तवारिणा ॥१॥ कडवी तुंचीके बीज, मालती, गुड़ टंक १६, हिंगल २ टक जमालगोटेकी मिंगी, मिरच २ टंक, सुहागा २ टंक, गुडसे गोली बनाकर गरम जलसे लेवे तो कुत्तेका विष दूर होवे ॥१॥ गुडतैलार्कदुग्धैश्च लेपः श्वानविषं हरेत् । अपामार्गस्य मूलं तु कक्कं मधुना लिहेत् ॥२॥ श्वानदंष्ट्राविषं हन्ति लेपः कुक्कुटविष्ठया । उन्मत्तश्वानदष्टाणां कुमारीदलसैन्धवम् । सुखोष्णं यः पिबेत्पीडा त्रिदिनांते सुखावहा ॥३॥ आज्येन तण्डुलीमूलं तुलसीमूलिकापि वा। तण्डुलोदकपानेन गुटी श्वानविषापहा ॥४॥ तैलं तिलानां पललं गुडं च क्षीरं तथाऽर्क सममेव Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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