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________________ तृतीयः] भाषाटीकासहितः। (१३९) शहद और घोडेकी लारमें मिरच घिसकर लगावे तो अतिनिद्रा दूर होय, जैसे सूर्यके उदय होनेसे अन्धकार दूर होजाता है ॥१॥ शिरीषबीजगोमूत्रकृष्णामरिचसैंधवम् । अञ्जनं स्यात्प्रबोधाय सरसोनशिलावरैः ॥२॥ जयपालभवां मज्जां भावयेनिम्बुकद्रवैः । एकविंशतिवेलं तु ततो वर्ति प्रकल्पयेत् मनुष्यलालया घृष्ट्वा ततो नेत्रे नियोजयेत् । सर्पदंष्टाविषं जित्वा संजीवयति मानवम् ॥ ३॥ सिरसके चीयां पीपल, मिरच, सैंधानोन इनका गोमूत्रसे अञ्जन करे तो तन्द्रा दूर होय । लहसन, मैनसिल, शुद्ध जमालगोटेकी मिंगी, नींबूके रसकी २१ भावना देय, गोली बनाय मनुष्य की लारसे अञ्जन करे तो सर्पका विष उतर जाय ॥ २-३ ॥ काचं सफेनं कनकं सतुत्थं शंख शिलारोचनमाक्षिकं च । पुंसः कपालं शिखिकुक्कुटांडमाजन्मजातं कुसुमं निहन्ति ॥ ४॥ कांच, समुद्रफेन, धतूरेका फल, शुद्ध नीलाथोथा, शंखका चूर्ण, मैनशिल, गोरोचन, सोनामक्खी, मनुष्यकी खोपडी, मोर तथा मुर्गेका अण्डा यह अचन जन्मभरकी फूलीका नाश करता है ॥ ४ ॥ नयनामृताञ्जनम् । त्रिफलाभृङ्गमहौषधिमध्वाज्यच्छागपयसि गोमूत्रे । नागं नवतिनिषिक्तं करोति गरुडोपमं चक्षुः ॥ १॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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