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________________ तृतीयः] भाषाटीकासहितः। (१३१) अनेक मदमस्त इस्ती समान रोगोंको यह पञ्चानन रस नाश करता है ॥४॥ ज्वरांकुशरसगुटिका । . शुद्धं मूतं विषं गन्धं धूर्तबीजं त्रिभिः समम् । चतुर्णी द्विगुणं व्योषं चूर्ण गुंजाइयं मतम् ॥१॥ जंबीरकस्य मज्जाया आईकस्य द्रवैयुतम् । महाज्वरांकुशो नाम ह्यष्टज्वरनिवारकः ॥ २ ॥ ऐकाहिकं व्याहिकं च तार्तीयं च चतुर्थकम् । विषमंच त्रिदोषोत्थं हन्त्यवश्यं न संशयः ॥ ३॥ पारा शुद्ध, तेलिया मीठा, गंधक, धतूरेके वीज यह तीनों बराबर इनसे दूनी सोंठ, मिरच, पीपल लेय, जंभीरी अथवा अदरखके रसमें गोली दो गुञ्जाप्रमाण बनावे, यह महाज्वरांकुश नाम रसगुटिका है, अष्टज्वरोको तथा ऐकाहिक, व्याहिक. तृतीयक, चतुर्थक, विषमज्वर, त्रिदोष इनको नाश करे ॥ १-३॥ घोडाचोली। विष रस गंधक अरु हरताल, त्रिकटु त्रिफला टंकणखार। अजयपाल भांगरा रस गोली, चौंसठ रोगगमावै घोडाचोली ॥१॥खण्डेन सह गृहीयाद्गुटिकानां चतुष्टयम् । उष्णं जलं चानु पेयं वारान्सप्त च पञ्च वा ॥२॥ मूक्ष्मं विरेचनं कुर्याजीर्णज्वरविनाशिनी । अजीर्णशूलग्रहणीगुल्मवातामवातजित् ॥३॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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