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________________ तृतीयः ]. भाषाटीकासहितः। (१२९) , दोनों जीरे, पीपल, सोंठ, पाँचों नोन, मिरच, शुद्ध गन्धक, अभ्रक, सुहागा, सज्जी, जवाखार, पारा, आधी मात्रा तलिया मीठा यह सब बराबर एकत्र कर अदरखके रसकी पांच भावना तथा पानक रसकी पांच भावना देवे, फिर गोल मिरचके बरावर गोली बना खावे तो आमविकार, ज्वरसहित सन्निपात, असाध्य प्रमेह और उदाव दि रोग दूर होय ॥ १ ॥ वडवानलरसगुटिका। सूतं भुजङ्गममृतं लवणं हरिद्रा व्योषं धनं जयजटावनि १ भू धरित्री। अष्टादश १८त्रि ३ नव ९ वह्नि ३मितश्च भागःप्रोक्तो रसो रसगुणैर्वडवानलोयऽम् ॥ १ ॥ निम्बुकाईककरीरपयोभिः शिग्रुकेसरिभुजङ्गलताभिः। साध्यमनिसदनानि लशूलाध्मानहानि वडवानलचूर्णम् ॥ २ ॥ पारा १ टंक, शीशा १ टंक, गन्धक १ टंक, शीशा पारेको मिला एक करले, सैंधानोन १८, हलदी ३, सोंठ, मिरच, पीपल ९, चीता ३ भाग इन सबको नीम्बूके रसकी, अदरखके रसकी, करीरके रसकी, दूधकी, सैंजनके रसकी, और नागकेशरकी सात सात भावना देवे, फिर गोली बनावे और खावे तो जड बुद्धिको, मन्दाग्निको, वायुशूलको, अफरेको दूर करे ॥ १ ॥ २ ॥ . पंचाननरसमुटिका १-३ । सूतं गन्धकचित्रकं त्रिकटुकं मुस्तं विडङ्गं विषमेतेषां समतुल्यमार्कवरसं गुञाप्रमाणा वटी । कुष्ठाष्टादशगुल्मरोगमुदरप्लीहप्रमेहादयो रोगनेकसुभूरिदर्पदलने ख्यातश्च पञ्चाननः ॥ १ ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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