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________________ (११८) योगचिन्तामणिः। [गुटिकाधिकार: आमलादिवटिका। आमलं कमलं कुष्ठं लाजाश्च वटगेहकम् । एतच्चूर्णस्य मधुना गुटिकां धारयेन्मुखे । तृषां प्रवृद्धा हत्येषा मुखशोषं च दारुणम् ॥ १॥ आमला, कमलगट्टा, कूठ, धान की खील, बडकी जटा इनका चूर्ण कर शहदमें गोली बनाकर मुखमें रक्खे तो बहुत प्यास और भयानक मुख सूखना दूर होवे ॥ १ ॥ - शंखवटी १-२। । चिंचाक्षारपलं पटुवजपलं निम्बूजले कल्कितं तस्मिञ्छंखपलं प्रतप्तमसकृत्रिर्वाप्य शीर्णावधि । हिङ्गुव्योषपलं रसामृतपलं निक्षिप्य निकासकान्। हीशंखवटी क्षयग्रहणिरुग्द्याऽन्त्रशूलादिषु ॥१॥ इमलीका खार एक पल, पांचों नोन एक पल, नींबूका रस इनमें एक पल शंखको गरम करके जबतक उसके टुकडे न हों तबतक बुझावे, फिर हींग, सोंठ, मिरच, पीपल १ पल, शुद्ध पारा शुद्ध गंधक इनको डालकर गोली १ टंकके प्रमाण बनावे । यह गोली क्षयगेग, संग्रहणी, हृदय, पसलीके शूलादिकोंको दूर करती है ॥ १॥ : चिंचाक्षारं लवणमखिलं निम्बुतोयेन पिष्टं तप्तं शंखं पुनरपि पुनर्निक्षिपेत्सप्तवारान् । तस्मिञ्छंखो भवति शिथिलो मर्दयेत्तेन सार्द्ध व्योष हिंगुस्तदपि च पुनः पादमानेन दद्यात् ॥ १॥ चातुर्थाशं विपरसबली योजयित्वाऽत्र कुर्यात्सम्यग्बवा भिषगथ गुटी बादरास्थिप्रमाणाम् । शूले Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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