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________________ तृतीयः] भाषाटीकासहितः। (१११) पाण्डुरोगजित् । कांकायनेन शिष्येभ्यः शस्त्रक्षाराग्निभिर्विना ॥४॥ कथिता गुटिका चैषा गुदजानांविनाशिका ॥५॥ हरड ५ पल, जीरा १ पल, मिरच १ पल, पीपल १ पल, पिपलामूल १ पल, चव्य ४ पल, चित्रक ५ पल, सोंठ ६ पल ये सब औषधि पलपल क्रमसे और जवाखार २ पल, शुद्ध भिलावा ८ पल, जिमीकंद सबसे दूना और गुड मिलाके छोटे बेरके समान गोली बनावे और प्रातःकाल छाछके साथ लेवे तो अग्निको दीप्त करे, संग्रहणी और पाण्डुरोगका नाश करे, यह कांकायनकविने अपने शिष्योंसे कहा है और संपूर्ण गुदाके रोगोंका नाशक है ॥ १॥५॥ ___ अभयादिमोदक । अभया पिप्पलीमूलं मरिचं नागरं तथा । त्वक्पत्रं पिप्पली मुस्तं विडङ्गामलकानि च ॥१॥ कर्ष प्रत्येकमेषां तु दंत्याः कर्षत्रयं तथा। षट्कर्षाश्च सितायास्तु द्विपला त्रिवृता भवेत् ॥२॥ सर्व संचूर्णितं कृत्वा मधुना मोदकः कृताः । खादेव प्रतिदिनं चैकं शीतं चानु पिबेजलम् ॥ ३॥ तावद्विरिच्यते जन्तुर्यावदुष्णं न सेक्येत् । पाण्डुरोगं विषं काय जंघायाश्च रुजस्तथा ॥४॥शिरोति मूत्रकृच्छं च दुर्नामकभगन्दरौ । अश्मरीमेहकुष्ठं च दाहशोफोदराणि च ॥५॥ हरड, पीपलामूल, मिरच, सोंठ, तज, तेजपात, पीपल, मोथा, वायविडंग, आमला इन सबको चार चार टंक लेवे और दन्ती १२ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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