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(११०) योगचिन्तामणिः। गुटिकाधिकारःमूरणभागा यथोत्तरं द्विगुणाः । सर्वसमो गुडभागो वटिका दुर्नामनाशाय॥२॥वृद्धदारुकभल्लातशुण्ठी चूर्णेन योजितः। मोदकः सगुडो हन्यात्षड्विधाशंस्कृतां रुजम् ॥ ३॥ जिमीकन्दका चूर्ण १६ पल, चित्रक ८ पल, सोंठ २ पल, मिरच १ पल इनकी गोली गुडमें बनावे तो अर्शको दूर करे मिरच चार टंक, सोंठ ८ टंक, चीता १६ टंक, जिमीकंद ३२ टंक, गुड सबके बराबर लेवे और गोली बनाकर खाय तो अर्शरोगको दूर करे । विधायरा, शुद्ध भिलावा और सोंठ इनका चूर्ण गुड मिलाय गोली बनाकर खावे तो छः प्रकारके अर्शरोगोंका नाश करे ॥ १-३ ॥
सनागरापुष्करवृद्धदारुकं गुडेन यो मोदकमत्त्युदारकम् । अशेषदुर्नामकरोगदारकं करोति वृद्धं सहसैव दारकम् ॥ ४॥ सोंठ, पुहकरमूल, विधायरा इनकी भले प्रकार गुडमें गोली बनाकर खावे तो सम्पूर्ण प्रकारके अर्शोका नाश करे और बल बुद्धिको बढावे ॥ ४॥
___ कांकायनीगुटिका। पथ्यापञ्चपलान्येकमजाजिमरिचस्य च । पिप्पली पिप्पलीमूलं चयचित्रकलागरैः ॥ १॥पलाभिवृद्धः क्रमशो यवक्षारं पलद्वयम् । भल्लातकपलान्यष्टौ सूरणो द्विगुणोमतः॥२॥ द्विगुणेन गुडेनैषा वटिका चाक्षसंमिता। एकेका भक्षयेत्प्रातस्तकमम्लं पिबेदनु ॥३॥ वह्नि संदीपयत्याशु ग्रहणी
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