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________________ प्रतिष्ठितप्रकरणम् १. नक्षत्रवारस्तिथिभिः सुलनैः कार्य न किंचिच्छकुने विरुद्ध ॥ दोषेऽपि तेषां शकुनेऽनुकूले सदैव सिध्यंति समीहितानि ॥ १३॥ पूर्वजन्मकृतकर्मणः फलं पाकमेति नियमेन देहिनः॥ तत्प्रकाशयति दैवनोदितः प्रस्थितस्य शकुनः स्थितस्य च ॥ १४॥ ॥ टीका ॥ गोलार्थे णिन् । पुनः कीदृक्कलानुसारीति । अत्र कलाशब्देनाभ्यासो गृह्यते । तदनुसर्तु शीलमस्येति कलानुसारि याहगभ्यासस्ताहरज्ञानमित्यर्थः ॥ १२॥ नक्षत्र. वारैरिति ॥ शकुने विरुद्ध सति नक्षत्रवारैस्तथाविधैस्तिथिभिनन्दादिभिः सुलमैः स्वामिनिरीक्षितादिगुणोपेतैः न किंचित्कार्य यतस्तेषां पूर्वोक्तानां दोषेऽपि वैगुण्येपि शकुने अनुकूले सति समीहितानि वाछितानि सदैव सर्वकालं सिध्यति न तु कदाचिदित्यर्थः ॥ १३ ॥ पूर्व इति पूर्वजन्मनि यत्कृतं कर्म तस्य फलं शुभाशुभं नियमनदेहिनः पाकमुदयाभिमुखतामेति तर्हि शकुनस्य किमायातमित्यपेक्षायामाह-तत्प्रकाशयतीति । दैवं शुभाशुभं कर्म तेन नादितः प्रेरितः शकुनः । प्रस्थितस्य कुत्रचिद्गच्छतो जनस्य स्थितस्य वा स्वसअनि कृतस्थितेर्वा तत्पाकं तयोः शुभाशुभकर्मणोः पाकं परिणतिं प्रकाशयति विविच्य दर्शयतीत्यर्थः ॥ १४ ॥ ॥ भाषा ॥ भ अशुभके उपदेशके देवेमें गुरुपनोहै यातें और या ग्रंथमें गणित करके कभी कार्य नहीं है क्यों गणित तो प्रश्नके निर्णयके अर्थ करेहैं जब याकरके शुभ अशुभका निर्णय होजाय तब गणितमें प्रयास जो खेद सो नहीं करनो योग्यहै, और निश्वयही या शास्त्रके पाठमात्रते ही ज्ञान उत्पन्न होयहै, फैसो ज्ञानहोयहै कि चित्तके हरवेमेंहै शीलस्वभाव जाको, फिर कैसो है कला जो अभ्यास ताके अनुकूल है शील जाको, अर्थात् जैसो जाकू अभ्यास है तैसो ही ताकू ज्ञान होयहै ॥ १२॥ नक्षत्रवारैरिति ॥ शकुन जो विरुद्धहोय, और नक्षत्र उत्तम होय, नंदादिक तिथि उत्तम होय, और लग्न अपने स्वामकिरके निरीक्षितादिक गुणयुक्त होय तो इनकरके कभी न होय, और जो ये सब दोषयुक्त होय, और शकुन अनुकूल होय तो वांछितफल कार्य सर्वकालसिद्ध होय ॥ १३॥ पूर्व इति ॥ पूर्व जन्ममें जो कियो कर्म ताकोफल शुभ वा अशुभ सा नियमकरके देहधारीकू उदयहोय है तो यामें शकुनको कहा तो ये कहै हैं दैव जो शुभ अशुभ कर्म ताकरके प्रेरोहयो शकुन है सो कहूंकू गमन करे ताकू वा घरमेंही स्थि Aho ! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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