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पल्लीविचारप्रकरणम् ।
(४१५) पल्लिका दिशति दक्षिणाययोरर्थहानिमशुभं विलोकिता ॥ अध्वगस्य शुभलाभदायिनी वीक्षिता भवति पृष्ठवामयोः॥ ॥ ३१ ॥ उन्नतं समधिरुह्य दक्षिणं वामतोऽवतरति प्रियैपिणी ॥ पल्लिका यदि तदा प्रवासिभिलभ्यते झटिति राज्यमक्षयम् ॥ ३२॥
॥ टीका ॥
वामः स्यात्प्रवेशकाले च यदि दक्षिणः स्यात्तदा पुंसां मनोरथादप्यधिकानि का
णि अखिलानि समस्तानि तूर्ण शीघ्र सिध्यंति ॥ ३० ॥ पल्लोति ॥ पल्लिका दक्षिणाग्रयोः दक्षिणः अनुलोमप्रदेशः अग्रं पुरःप्रदेशः अनयोईद्वः तयोविलोकितां दृष्टा अर्थहानिमशुभं च दिशति गंतुारंति शेषः । पृष्ठवामयोः वीक्षिता अध्वगस्य शुभलाभदायिनी भवति ॥ ३१ ॥ उन्नतमिति ॥ यदि पल्लिका दक्षिणमुन्नतं समधिरुह्य प्रियैषिणी वामतः वामदिग्विभागे अवतरति तदा प्रवासिभिःझटिति शीघ्र राज्यमक्षयमविनाशिलभ्यते ॥ ३२ ॥ अस्या वारादि स्पर्शनविचारस्तु ग्रथांतरादेव ज्ञेयः तद्यथा। “अथातः संप्रवक्ष्यामि शृणु शौनक यत्नतः॥पल्लीप्रपतनं चैव सरटस्या धिरोहणम ॥१॥ प्रतिपद्रोगसंप्राप्तिद्धितीयायां तथैव च ॥ तृतीयायां भवेल्लाभश्चतु
झं रोग एव च ॥२॥ पंचम्यां चैव षष्ठयां च सप्तम्यां स्याइनागमः ॥ अष्टम्यां
॥ भाषा॥
पनकं मनोरथसं भी अधिक समस्त कार्य शीघ्र सिद्ध होय ॥ ३० ॥ पल्लीति ॥ गमनकर्ताक पल्ली जेमने भागमें वा अग्रभागमें दोखै तो अर्थकी हानि और अशुभ करै. जो मार्गीकू पीटपीछे वा वामभागमें दीखै तो शुभ देवै ॥ ३१ ॥ उन्नतमिति ॥ पल्ली गमनका जेमनी दिशामें ऊंची चढती दखै तो प्रियकरै, वामभागमें नीचे उतरती दीखै तो गमनकरवेवाले पुरुषकं शीघ्रही अक्षय राज्य प्राप्त होय ॥ ३२ ॥ अब पल्लोके वारके तिथिके अंगके नक्षत्रके लग्नके स्थानके फल और ग्रंथसूं कहैहैं ।। सूतजी शौनकजीसू कहैं हैं ॥ शौनक ! पल्ली जो छपकली वा छाप या नामसूं प्रसिद्ध है. याको पडनो, और शरट जो किरकेंटां ताको चढनो इनको फल हम कहेहैं सो तुम सुनो ॥ १॥ पडवामें पल्लीको पतन रोग करै. दूजमें पल्लीको पतन रोग कर. तीजमें पल्लीको पतन लाभ करै. चौथमें पल्लीको पतन रोग करै ॥ २ ॥ पंचमीमें, छठमें, सप्तमीमें पलीको पतन धनको आगमन करै. अष्टमी
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