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________________ ( २९८ ) वसंतराजशाकुने - द्वादशो वर्गः । छायासु लाभं भुवि भूमिलाभं विघ्नं जले ग्रावणि कार्यनाशम् ॥ करोति काको विरुवन्नरस्य प्रस्थायिनः स्थानगतस्य वापि ॥ ११७ ॥ द्वारप्रदेशे रुधिरानुलिप्तो विरौति काकः शिशुनाशनाय || पक्षौ विधुन्वन्विरुवन्विरूक्षं शान्ते प्रदीप्ते च भवेन्न शस्तः ॥ ११८ ॥ भ्रमन्नयोर्ध्वो प्रविधाय पक्षी काकः कुनादः प्रलयं करोति ॥ क्रुद्धोऽधिरूढः करटांतरं च रोगेण मृत्युं कुरुते नराणाम् ॥ ११९ ॥ द्रव्ये हृते चापहृते खगेन विनाशलाभावपि तादृशस्य ॥ रुक्मस्य पीते रजतस्य शुक्ले चैलस्य कार्पासमये भवेताम् ॥१२०॥ ॥ टीका ॥ स्थितस्यापि जनस्य दिवसत्रयेण प्रभूतं विपुलं दुःखं स्यात् ॥ ११६ ॥ छायेति ॥ प्रस्थायिनः स्थानस्थितस्य वापि नरस्य काकः छायासु विरुवल्लाभं भुवि विरुवन्भू मिलाभं जले विरुवन्विघ्नं ग्रावणि विरुवन्कार्यनाशं करोति ॥ ११७ ॥ द्वार इति ॥ afrigलिप्तः arat द्वारमदेशे यदा विरौति तदा स शिशुनाशनाय स्यात पक्षी विधुन्वन् विरूक्षं विरुवन्काकः शांते प्रदीप्ते च दिग्विभागे शस्तो न भवेत् ॥ ११८ ॥ भ्रमन्निति ॥ पक्षौ ऊद्ध प्रविधाय काकः कुनादः भ्रमन्प्रलयं करोति तथा क्रुद्धः सन्करटांतर मधिरूढश्चेन्नराणां रोगेण मृत्युं करोति ॥ ११९॥ द्रव्य इति ॥ खगेन हृते द्रव्ये अपहृते त्यक्ते च सति तादृशस्य वस्तुनः विनाशलाभावपि भवेताम ॥ भाषा ॥ ॥ ११६ ॥ छायेति ॥ गमनकर्ताकूं वा स्थान में बैठो होय ताकूँ जो काक छाया में शब्द करे तो लाभ करे. और पृथ्वी में बोले तो भूमिको लाभ करे. जलमें करे तो : विघ्न होय. और पाषाणपे बैठकरके बोले तो कार्यको नाश करे !! ११७ ॥ द्वार इति ॥ जो काक रुधिर करके लिप्त होय द्वारमें जो बोलै तो बालकके नाशके अर्थ होय. और जो पंखनकूं कंपायमान करत रुखो बोले शांतदिशा में वा दीप्तदिशा में तो शुभ नहीं " ११८ ॥ ॥ भ्रमन्निति ॥ पंखनकूं ऊपर कर काक कुनाद करत भ्रमतो हुयो प्रलय करे. और काक क्रुद्ध होय दूसरे काकपे चढजाय तो मनुष्यनकूं रोगकरके मृत्यु करे ॥ ११९ हरण कर ले जाय वा पटक जाय तो द्रव्येति ॥ जो काक द्रव्य लाभ होय. पीत वस्तु होय वैसी वस्तुको विनाश होय तो रजतको तो सुवर्णको लाभ होय और शुक्लत्रस्तु Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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