SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काकरुते यात्राप्रकरणम् । (२८७) स्तंभे गजानांनियतं गजाप्तिं गजाधिरूढः पृथिवीपतित्वम्॥ तुरंगमे वाहनभूमिलाभं करोति काको विजयं ध्वजे च ॥ ७७ ॥ प्रनष्टलाभं विजयं च कूपे क्षिप्रं नदीरोधसि कार्यसिद्धिम् ।। पूर्णे घटेंडे च धनाप्तिवृद्धी ध्वांक्षोऽधिरूढः कुरुते सुशब्दः ॥ ७८ ॥प्रासादधान्योच्छ्यह→पृष्टिनिष्पनसस्यावनिशाइलादौ ॥ ध्वांक्षोऽधिरूढोधनसाधनाय रौति स्त्रियं यच्छति युग्मशब्दः ॥ ७९ ॥ ॥ टीका ॥ स्तंभ इति ॥ स्तंभे गजानां नियतं गजाप्ति गजाधिरूढः पृथिवीपतित्वमिति गजानां स्तंभे नियतं गजाप्तिः स्यात् गजेधिरूढः काकः पृथिवीपतित्वं करते तुरंगमे स्थितः काकः वाहनभूमिलाभं करोति ध्वजे स्थितः काकः विजयं करोति ॥७७॥ प्रनष्टेति ॥कूपे स्थितः प्रनष्टं लाभ विजयं च करोति नदीरोधसि स्थितः क्षिप्रं कार्यसिद्धिं करोति पूर्णे घटेंडे चाधिरूढो ध्वांक्षः सुशब्दःसन्धनाप्तिवृद्धी कुरुते ॥ ७८ ॥ प्रासादेति ॥ तत्र प्रासादो देवभूपानां गहन धान्योच्छ्यो धान्यराशिः हवें सामान्यगृहं पृष्ठिर्हस्त्यादीनां प्रसिद्धा निष्पन्नं सस्पं यस्यामवं विधावनिःशादलं बालतृणं आदिशब्दादन्येषां शुभवस्तूनां परिग्रहः एषु ध्वाक्षोऽधिरूढः धनसा ॥ भाषा ॥ देवे ॥ ७६ ॥ स्तंभे इति ॥ हाथीनके निसानके ऊपर बैठो होय तो निश्चय गजकी प्राप्ति होय. और गजपै बैठो होय तो पृथ्वीपति करे. और घोडापै बैंठो होय तो वाहन और भमिलाभ करै वजाप स्थित होय तो काक विजय करै ॥ ७७ ॥ प्रनष्टे इति ॥ कूपके ऊपर बैठो होय तो नष्ट हुयेको लाभ और विजय करै. और नदीके तटके ऊपर स्थित होय तो कार्यसिद्धि करे. और पूर्णकहिये भरो हुयो घटताके ऊपर वा अंडापै बैठो होय और सुन्दर शब्द करतो होय तो धनकी प्राप्ति और वृद्धि करै ॥ ७८ ॥ प्रासादति ॥ देवमंदिर, राजानके घर, धान्यकी राशि, सामान्य घर, हाथी, घोड़ादिकनकी पीठ अन्न जामें खूब भर रह्यो होय ऐसी पृथ्वी, छोटी घासकू आदिलेके और शुभवस्तुनपै काक बैठो होय तो धनके साधनके अर्थ जाननो. और जो युग्म बोल बोले ऐसो काक इनपै बैठो हुयो बोले Aho ! Shrutgyaņam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy