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पोदकीरुते भूपालमततथ्यादिक्प्रकरणम् ।
(२२९) सौम्यायां मधुरालापा लाभं कथयति प्रगे | अर्थनाशं समाख्याति कुमारी परुषस्वरा ॥ २८ ॥ द्वितीयप्रहरे शांता
लाभकरी मंता ॥ विरूपध्वनिना दुर्गा वस्त्रनाशाय कथ्यते ॥ २९ ॥ प्रधानलाभदा शांता तृतीयप्रहरे मता ॥ धनहानिकरी दीप्ता धनदस्य दिशि स्थिता ॥ ३० ॥ चतुर्थ प्रहरे शांता कुरुते भुजगाद्भयम् || दुर्गा दीप्तस्वरा कुर्यात्सौम्यायां मरणं विषात् ॥ ३१ ॥ प्रातरीशानगा शांता भयवार्ता प्रजल्पति || प्रदीप्तध्वनिना दुर्गा परचक्रसमागमम् ॥ ३२ ॥
॥ टीका ॥
तदा स्त्रियः परनरार्थित यांति यदि दीप्ता भवति तदा परपुंसा समागमं ब्रूते २७ ॥ ॥ सौम्पायामिति ॥ सौम्यायामुत्तरस्यां दिशि प्रगे प्रभाते प्रथमे प्रहरे कुमारी मधुरालापा भवति तदा लाभं कथयति परुषस्वरा अर्थनाशं समाख्याति ॥ २८ ॥ द्वितीयेति ॥ द्वितीयप्रहरे उत्तरस्यां दिशि शांता दुर्गा वस्त्रलाभकरी मता विरूपध्वनिना दीप्तशब्देन वस्त्रनाशाय कथ्यते ।। २९ ।। प्रधानेति । तृतीयप्रहरे धनदस्य दिशि स्थिता कुमारी यदा शांता स्यात्तदा प्रधानलाभदा मता भवति दीप्ता-सती धनहानिकरी भवति ॥ ३० ॥ चतुर्थेति ॥ चतुर्थमहरे सौम्यायां दिशि शांता पोदकी भुजगात्सर्पाद्भयं कुरुते दीप्तस्वरा दुर्गा विषान्मरणं कुर्यात् ॥ ३१ ॥ प्रातरिति ॥ प्रातः प्रथमप्रहरे ईशानगा शांता पोदकी भयवात्ती प्रजल्पति प्रदी
॥ भाषा ॥
॥ सौम्यायामिति ॥ उत्तरदिशामें प्रथमप्रहरमें कुमारी मधुर आलाप करती होय तो ला-. भकरे और कठोर शब्द करती होय तो अर्थको नाश करै ॥ २८ ॥ द्वितीयेति दूसरे प्रहरमें उत्तरदिशामें दुर्गा शांता होय तो वस्त्रको लाभ करे. दप्तिध्वनि करती होय तो `चस्त्रके नाशके अर्थ जाननी ॥ २९ ॥ प्रधानेति ॥ तृतीय पहरमें कुबेरकी दिशामें स्थित होयकर शांता होय तो पोदकी प्रधान लाभके देबेवारी जाननी और प्रदीप्ता होय तो धनकी हानि करै ॥ ३० ॥ चतुर्थेति ॥ चौथे प्रहरमें उत्तरदिशा में पोदकी शांता होय तो सर्पते भय करे और दीप्ता होय तो विषते मरण करे ॥ ३१ ॥ प्रातरिति ॥ प्रथम प्रहरमें ईशानदिशा में पोदकी शांता होय तो भयकी बार्ता करै. और प्रदीप्त ध्वनि करती होय
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