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पोदकीरुते विवाहप्रकरणम्। (१८३) अन्यो यदा पांडविकायुगस्य मध्ये विहंगी श्रयते विहंगः ॥ भवत्यसाध्वी वनिता यदा नु श्यामा सपत्नी नियतं तदा स्यात् ॥२६६॥ वामस्वरं मैथुनसेवनं वा भक्ष्यप्रदानं यदि वा विधाय॥ वामे ततस्तारमदीप्तसंस्थं साध्वी स्त्रियं जल्पति पक्षियुग्मम् ॥२६७॥ आहारदानस्वरमैथुनानि पक्षिद्वयं दक्षिणतः करोति ॥ यदा तदानी नियतं कुमार्या अहारि कौमारिकमन्यपुंसा ॥२६८॥ भूत्वानुलोमं यदि कृत्तशाखे श्यामा तरौ तिष्ठति कोटरे वा॥ तदाकुमारी क्षतयोनिमुद्रागृहीतभक्ष्या यदि गर्भिणी स्यात् ॥२६९॥
॥ टीका ॥ भवित्री ॥ २६५ ॥ अन्य इति ॥ यदा पांडविकायुगस्य मध्ये अन्यः विहंगः विहंगों श्रयते तदा असाध्वी वनिता भवति । यदा श्यामा श्रयति तदा नियतं सपत्नी स्यात् ॥ २६६ ॥ वामस्वरमिति ॥ वामे वामस्वरं मैथुनसेवनं वा भक्ष्यप्रधानं कृत्यांतरं विधाय यदि ततस्तारमदीप्तसंस्थं पक्षियुग्मं स्यात् तदा स्त्रियं साध्वीं ज. ल्पति ॥ २६७ ॥ आहारेति ॥ यदा आहारदानस्वरमैथुनानि पक्षिद्वयं दक्षिणतः करोति तदानीं नियतं कुमार्याः अन्यपुंसा कौमारिकमहारि ॥ २६८॥ भूत्वेति॥ यदि अनुलोमा भूत्वा कृत्तशाखे तरौ श्यामा तिष्ठति तदा कुमारीक्षतयोनिमुद्रास्यात्
॥भाषा॥
निश्चयही कुत्सित आचरण कर्ता होय ॥ २६५ ॥ अन्य इति ॥ जो पोदकांके युगलमें
और पक्षी विहंगी पोदकीके पास आय स्थित होय तो वो कन्या असाधुनी होय जो ये पोदकी दूसरे पक्षीके पास चली जाय तो निश्चयही कन्याके दूसरी सौत होय ॥ २६६ ॥ वामस्वरमिति ॥ पादकीको युगल वामभागमें वामत्सर वा मैथुनसेवन वा भक्ष्य दान करके ता पीछे जेमने भागमें दीप्त दिशामें वा दीप्त स्थानमें नहीं होय ऐसो पक्षीको युग्म होय तो स्त्रीकू साध्वी कहैं हैं ॥ २६७ ॥ आहारेति ॥ जो पक्षीद्वय आहार, दान मैथुन ये दक्षिणमांऊं करें तो निश्चयही कुमारी कन्याके और पुरुषकरके कुमारीपनो हरण होय ॥ २६८ ।। ॥ भूत्वेति ॥ जो अनुलोमा होयकर श्यामा शाखा कट रही जाकी ऐसे वृक्षमें स्थित होय वा कोटामें स्थित होय तो कुमारी कन्या क्षत है योनि जाकी ऐसी होय और जो तारा
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