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________________ ( १७४ ) वसंतराजशाकुने - सप्तमो वर्गः । वामे बाह्यं दक्षिणे आंतरं स्वपुच्छोत्पाटे पोदकी हंति से - न्यम् ॥ चंच्या सर्व चर्वयंती स्वमंगं वक्ति श्यामा स्वामिनो गात्रभंगम् ॥ २३२ ॥ युद्धप्रश् नोद्धृता नापि तारा स्याव्यावृत्तौ वामगा पांडवी चेत् ॥ मूर्ध्ना सार्धं श्रीजयश्रीपणं तत्प्राणद्यूतं स्यादवश्यं भटानाम् ॥ १३३ ॥ प्रयाति तारा यदि तोरणांते निवृत्तिकाले प्रतिलोमगा चेत् ॥ तद्धांक्षवैतालशृगालमृधरक्षःक्षुधार्त्तिक्षपणं रणं स्यात् ॥ २३४ ॥ ॥ टीका ॥ तदा समरः अतिघोरः स्यात् । कीदृग् शिवाफेत्कृततालबंधनृत्यत्कबंध इति शिवाफेत्कृतमेव ' तालबंधः हस्तास्फोटः तेन नृत्यंतः कबंधा यत्र स तथा ॥ २३९ ॥ वामइति ॥ वामे स्वपुच्छोत्पाटे पोदकी बाह्यं सैन्यं इति । दक्षिणे स्वपुच्छोत्पाटे आंतरस्थां हंति । चंच्वा स्वमंगं चर्वयंती पोदकी युद्धे स्वामिनो गात्रभंगं वक्ति ॥ २३२ ॥ युद्धेति ॥ चेद्यदि युद्धप्रश्ने सति उद्धृता न स्यात् तारा अपि न स्यात् व्यावृत्तौ वामगा पांडवी स्यात्तदा मूर्ध्ना सार्द्ध श्रीजयश्रीपणं स्यात् भटानां प्राणद्यूतमवश्यं तत्स्यात् ॥ २३३ ॥ प्रयातीति । यदि तोरणांते तारा प्रयाति चेत्रि• वृत्तिकाले प्रतिलोमगा भवेत्तदा रणं स्यात् । कीदृग् ध्वांक्षेति ध्वांक्षवैतालशृगाल रक्षांसि तेषां क्षुधार्तिः क्षुत्पीडा तस्याः क्षपणं दूरीकारकम् ।। २३४ ॥ ॥ भाषा ॥ जामें शब्द करते होंय हजारन कबंध जामें पडे होंय ऐसो अत्यंत घोर संग्राम करावे ॥ ॥ २३१ ॥ वामइति ॥ वामभागमें पूंछकूँ उत्पाटनकरें तो पोदकी बाहरकी सेनाको नाश करे. और जेननेमांऊंकी पूंछको उखाडे तो भीतरकी सेनाको नाश करें, और जो चोंचकर अपने अंगकूं चर्वण करैतो पोदकी युद्ध में स्वामीके देहको भंगकरै ॥ २३२ ॥ युद्धेति || युद्ध के शकुनमें पोदकी उद्धृता न होय और ताराभी न होय वगदतीसमय वामभाग में होय ती मस्तक करके `सहित राज्यश्रीकूं आदिले सब निवेदन करे और जो योद्धानके प्राणको नाश अवश्य होय ॥ २३३ ॥ प्रयातीति ॥ जो तोरणके अंतमें तारा होय वगदतीसमय प्रतिलोमगा होय "तो काक, वैताल, हागाल, गीव, राक्षस इनके क्षुधाकी पीडाकूं दूरकरबे Aho Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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