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पोदकीरुते संधिविग्रहजयादिप्रकरणम्। (१७१ ) स्यात्तोरणांते प्रतिलोमगा चेत्तारा यदिस्यादथवा निवृत्तौ।सतांगसंवृद्धसमृद्धराज्यमाज्यं यथानौ प्रविलीयते तत्॥२२१॥ राज्यं चिकीर्षोंर्यदितोरणांते प्रदक्षिणं याति खगोऽन्यजातिः।। विश्वंभरायामुररीकृतायां तदाधिपत्यं लभते नृपोऽन्यः२२२॥ इति पोदकीरते राज्याभिषेकप्रकरणं नवमम् ॥ ९॥ संधिविग्रहसपत्नसंगमात्सांप्रतंजयपराजयौ तथा॥बमहे शुभपथप्रवर्तिनां भूभृतां शकुननीतिवर्तिनाम् ॥ २२३ ॥
॥ टीका ॥ . तत्तथा ॥२२०॥ स्वादिति ॥ सप्तांगैःस्वामिजनपदामात्यकोशदुर्गबलमुहृद्भिः संवृद्धं वृद्धि प्राप्त समृद्धमृद्धिमदाज्यं तत्तोरणांते प्रतिलोमगा चेत्स्यात् । अथवा निवृत्तौ यदि तारा स्यात्तदा विलीयते समागतमपि विलयं यातीत्यर्थः किमिव आज्यं यथा अग्नौ प्रविलीयते ॥ २२१ ॥ राज्यमिति ॥ यदि राज्यं चिकीर्षोः तोरणांतेऽन्यजातिः खगः प्रदक्षिणं याति तदा विश्वंभरायामुररीकृतायां अन्यो नृपः आधिपत्यं लभते ॥ २२२॥ इति शत्रुजयकरमोचनादिसुकृतकारिमहोपाध्यायश्रीभानुचंद्रविरचितायां
वसंतराजटीकायां पोदकीरुते राज्याभिषेकप्रकरणं नवमम् ॥ ९॥ संधीति ॥ शुभपथप्रवत्तिनां भूभुजां संधिविग्रहसपत्नसंगमात तथा जयपराजयौ
॥ भाषा॥
मस्तकनकू नमाय नमाय जाके सिंहासनकू नमस्कार करें ऐसो राज्य होय ॥ २२० ॥ स्यादिति ॥ जो तोरणांतमें प्रतिलोमा होय. अथवा निवृत्ति समयमें जो तारा होय तो स्वामी १ जनपद २ अमात्य ३ कोश ४ दुर्ग ५ बल ६ सुहृद ७ ये राज्यके सातों अंगनकरके वृद्धिकू प्राप्त होय रह्यो और ऋद्धिवान् ऐसोभी राज्यनाशकू प्राप्त होय कौन किसीनाई. जैसे अग्निमें घृत लीन होय जाय तैसेही राज्य लीन होय जाय ॥ २२१ ॥ राज्यमिति ॥ राज्यकरो चाहे ताके जो तोरणांतमें और जातिको पक्षी प्राप्त होय, और, तारा कहूं चलीगई होय नहीं दीखै तो और राजा अधिपति होय ॥ २२२ ॥
इति श्रीजटाशंकरतनयज्योतिर्विच्छीधरविरचितायांवसंतराजभाषा
टीकायांपोदकीरुते राज्याभिषेकप्रकरणं नवमंम् समाप्तम् ॥ ९॥ संधीति ॥ शुभमार्गमें प्रवर्त हाय रहे और शकुनमार्गमें वर्त रहे ऐसे राजानको मि
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