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पोदकीरुते यात्राप्रकरणम्। (१५३) गवेषयंत्या शलभादिभक्ष्यं गतिः कुमार्या इह यादृशी स्यात् । तथाविधैव प्रविभावनीया विपश्चिता निश्चितमात्मकार्ये ॥ १६० ॥ मौनेन वा वामकृतस्वरा का तारा गता यच्छति वित्तकीर्ती ॥वामप्रदेशे त्वपसव्यशब्दा स्यान्मौनिनी वा कथितार्थसिद्धये ॥ १६१ ॥ वांच्छत्येका वामभागं प्रयातुंताराचान्यायातिलाभस्तदाल्पः॥लब्धाहारावामगा पादपस्था दत्वानर्थ लंभयत्यर्थसिद्धिम् ॥ १६२ ॥ एकातारा स्याद्वितारा द्वितीया ताराचान्यास्याच्चतुर्थीच वामा ॥ सर्वा एवं स्वं स्वमात्मानुरूपं कार्य कुर्युः शुक्लपक्षाःक्रमेण।।१६३॥ .
॥ टीका ॥ वाप्तौ भक्ष्यस्याप्राप्तौ फलानवाप्तिर्भवति फलस्य अप्राप्तिः स्यात् ॥ १५९ ॥ गवेषयंत्या इति ॥ शलभादि भक्ष्यं गवेषयंत्याः विलोकयन्त्याः कुमार्याः इह यादृशी गतिः स्यात् आत्मकायें विपश्चिता पंडितेन तथाविधैव गतिः प्रविभावनीया विचारणीया ॥१६० ॥ मौनेनेति ॥ मौनेनं वा वामकृतस्वरा वा वराही तारा गता सती वित्तकीर्ती पच्छति।वामप्रदेशे इति तु पुनः अपसव्यशब्दा मौनिनी वावामप्रदेशे गता सती अर्थसिद्ध्यै कथिता ॥ १६१ ॥ वांछतीति ॥ एका वामभागंप्रयातुं गंतुं वांछति अन्यातारायाति तदालाभोऽल्प: स्यात् यदि वामगालब्धाहारा पादपस्था भवति तदानर्थ दत्त्वा इष्टमर्थ लंभयति ददाति ॥ १६२ ॥ एकेति ॥
॥भाषा ॥ भक्ष्यकी प्राप्ति न होय तो फलकी भी प्राप्ति नहीं होय ॥ १५९ ॥ गवेषयंत्या इति ॥ भक्ष्या ढूंढ रही होय पोदकी और वाकी वा समयमें गति होय तैसीही गति अपने कार्यमें विद्वान् पुरुषकू विचार करनो योग्य है ॥ १६० ॥ मौनेनेति ॥ जो तारा मौन धारे हुये अथवा वामभागमें शब्दकर दक्षिणभागमें चली जाय तो धन कीर्ति देवे. और वामप्रदेशमें होय जेमने माऊं शब्द करै अथवा मौन धारे होय फिर वामगति होय तो अर्थ सिद्धिके अर्थ जाननी ।। १६१ ॥ वांछतीति ॥ एक तारा तो वामभागमें जायबेकू इच्छा कर है और दूसरी तारा चली जाय तो अल्पलाभ होय जो वामभागमें होय लघु आहार जाकेपास होय और वृक्ष पै. स्थित होय तो अनर्थ देकरके इष्ट जो अर्थ ताकू लाभ करै ॥ १६२ ।। ॥ एकेति ॥ जो प्रथम तारा होय और दूसरी अर्धतारा होय, फिर तारा होय, और ता
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