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पोदकीरुते गतिप्रकरणम् ।
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पराङ्मुखी गच्छति या च पृष्ठात्पृष्ठस्थितं साकरणीयमाह ॥ आयाति पृष्ठाभिमुखं पुनर्या प्रयोजनं सा कथयत्यतीतम् ॥ १२८ ॥ निर्गच्छतो गच्छति पृष्टवामा पृष्टप्रकोपार्थविनाशनाथ | आहोर्द्धगाधोवदना पतंती वामे मृतिं दक्षिणतोऽरिनाशम् ॥ १२९ ॥ वामावर्ता पोदकी पृष्ठभागान्नेष्टानिष्टे सा भयादौ प्रशस्ता । या स्यात्पृष्ठाद्दक्षिणावर्तिनी सा कार्येऽभीष्टे शस्यते न त्वनिष्टे ॥ १३० ॥ इति पोदकीरुते गतिप्रकरणं षष्ठम् ॥ ६ ॥
॥ टीका ॥
लाभ कुमारी कुरुते । पुनः वामेन भागेन पुमांसं पुनःपुनः आवेष्टयंती नरस्य मरणं करोति ॥ १२७ ॥ परान्मुखीति ॥ या च पृष्ठात्पराङ्मुखी गच्छति सा पृष्ठे स्थितं करणीयमाह । या पुनः पृष्ठाभिमुखमायाति सा प्रयोजनं कार्यमतीतं कथयति ॥ ॥ १२८ ॥ निर्गच्छत इति । यदि निर्गच्छतः पुंसः पृष्ठवामा गच्छति पृष्ठे वामा भवति । तदा पृष्ठप्रकोपार्थविनाशनार्था इति पृष्ठस्थितो जनसमुदायः नृपो वा तेषां प्रकोपः अर्थविनाशश्च तावेव अर्थः प्रयोजनं यस्याः सा तथेत्यर्थः । ऊद्धगा अधोवदना पती च वामे वामभागे मृतिमाह मरणं ब्रवीति । दक्षिणे दक्षिणभागे पुनः ऊर्द्धगा अधोवदना पतंती अरिनाशमाह ॥ १२९ ॥ वामेति ॥ पोदकी देवी पृष्ठभा
॥ भाषा ॥
जो बांये भागकरके पुरुषन आवेदन करें तो पुरुषको मरण करे है || १२७ ॥ पराङ्मुखीति ॥ जो तारा पीठ पीछे ते मोढो फेर करके गमन करे तो कार्यकूं पीछे होयगों ऐसो क हैं ये जाननो फेर पीठ माऊंते सम्मुख आय जाय तो कार्यव्यतीत होय गयो ताय कहे है ॥ ॥ १२८ ॥ निर्गच्छत इति ॥ जो पुरुष यात्राकर के निकस्यो ताके तारों पृष्ट बामा होय - तो अर्थात् पीठमाऊं कूं बांई गमन करे तो पिछाड़ी कोई मनुष्यनको समूह होय अथवा राजा होय तो उनको कोप, और अर्थनाश होय, और ऊपर गमन कररही होय वाको नीचो मुख होय नीचेकूं पड़ती होय, और वामभाग में होय तो मृत्युकी करवेवारी जाननी और जो ऐसे आचरण करत जेमने भाग में होय तो वैरीको नाश करें ॥ १२९ ॥ वामेति ॥ पीठमा अंसूं बांई होय कर मनुष्यकूं आवेष्टन करे तो वांछित कार्यमें योग्य नहीं वो भयादिक कार्य में योग्य है और जो पोदकी पीछेहूं जेमनी माऊं होय कर मनु
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