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वसंतराजशाकुने - सप्तमो वर्गः ।
भयं प्रकंपादतिमात्रमत्र स्वगात्रपीडा स्वजनस्य भीर्वा ॥ उत्पाटनात्पुच्छपतत्रयोश्च बंधुक्षयो वा मरणं भवेद्वा ॥८४॥ प्रत्यक्षदेव्या निकटस्थभक्ष्यत्यागाद्भवत्यभ्यवहारहानिः ॥ गृही भक्ष्यत्यजनेन पुंसां हस्तस्थितस्यापि धनस्य नाशः ॥ ॥ ८५ ॥ स्वजातियुद्धे समजातियुद्धं परेण युद्धे परजातियुद्धम् ॥ भंगो भवेत्पूजितपक्षिभंगे जये तदीये विजयो जनस्य ॥ ८६ ॥
॥ टीका ॥
स्कतायां शोकाकुलत्वं स्यात् । मूत्रे पुरीषे वमने च अर्थनाशः स्यात् ॥ ८३॥ भयमिति ॥ प्रकंपाद्भयमतिमात्रं भूयस्तरं भवेत्। स्वगात्रपीडा स्वजनस्य भीर्वाभवति । पुच्छपतत्रयो रुत्पाटनाद्वंधुक्षयो मरणं वा भवेत् ॥ ८४ ॥ प्रत्यक्षेति ॥ प्रत्यक्षदेव्या निकटस्थभक्ष्यत्यागात् अभ्यवहारहानिरिति अभ्यवहारोऽशनं तस्य हानिरभावः भवेत् । गृहीतभक्ष्यत्यजनेन पुंसां हस्तस्थितस्यापि धनस्य नाशः स्यात् ॥ ८५ ॥ स्वजातीति ॥ स्वजातिना आत्मीयेन समं युद्धे समजातिभिः समं युद्धं भवति । परेण अन्यजातीये समंयुद्धे परजातिभिः सह युद्धं भवति । पूजितपक्षिभंग इति अधिवासितपक्षिभंगे भंग:प
॥ भाषा ॥
और कुटुंब में घातकरे और जो उदास होय तो शोक कर व्याकुल करे और मूत्र कर रही होय वा वीट करती होय वा घमन नाम उलटी करती होय तो अर्थ नाश करे |॥ ८३ ॥ भयमिति ॥ पोदकी कांप रही होय तो बहुत भय करे अपने देहमें पीडा करें और स्वजन जननकू भय करे और पूंछ पंख इनकं धरती में पटक मारे फड फडावे उखाड़े तो बंधुको क्षय अथवा मरण करें || ८४ ॥ प्रत्यक्षेति || और पोदकी के निकटमें भक्षण हैं। और त्याग कर राखो होय न खाय तो मनुष्यकूँ भोजनकी हानि करावे और जो भक्षण ग्रहण कर राख्यो होय फिरवाये ते छूट जाय तो हाथमें आयो हुयो धननाशकूं प्राप्त होय || ८९ || स्वजातीति ॥ पोदकी अपने समान जातिकरके युद्ध कर रही होय तो मार्गीकूं भी समान जातिके करके युद्ध करावे और जो परजातिकरके युद्धकर रही होय तो प्राणी कुंभी परजातिकरके युद्ध होय और बैठे बैठे पंखकूं फटकारण लगे तो भंग नाश करें
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