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उसमें वासुदेव से प्राधा बल होता है एवं उस निहा के अनुदय में भी उस मनुष्य में दूसरे मनुष्यों की अपेक्षा तिगुना एवं चौगुना बल होता है । यह बात प्रथम संघयण वाले को लक्ष्य करके कही गई है।
प्रश्न : - २० - स्त्यानद्धित्रिक के उदय में जीव को सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है या नहीं ?
उत्तरः- स्त्यानद्धित्रिक के उदय वाले जीव को सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती है ।
इसके सम्बन्ध में आचारांग सूत्र की टीका में तीसरे अध्ययन के प्रथम उद्देश में कहा है
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यथा - " स्त्यानद्धित्रिकोदये
सम्यक्त्वावाप्तिर्भवसिद्धिकस्यापि न भवतीति । किंच यदि स्त्यानद्रि निद्रावतः कदाचिदज्ञानतश्चारित्रं दत्तं भवेत्तर्हि तस्य शास्त्रोक्त विधिना लिंगं परित्याज्यं । तद् विधिस्तु प्राक्तन प्रश्नोत्तरादवसेयः । कथं तर्हि कर्मग्रन्थादौषष्ठं प्रमत्तगुणस्थानं यावत् स्त्यानर्द्धि त्रिकोदयः प्रतिपाद्यते, उच्यते, उच्यते, मतान्तरमेतदिति संभाव्यते या पूर्व प्राप्त सम्यक्त्वादेः स्त्यानर्द्धिनिद्रोदयस्तत्र प्रतिपादितोऽस्ति इति न कश्चिद् विरोधः तत्त्वं तु ज्ञानगम्यम् ।"
- स्त्यानद्धित्रिक के उदय में भवसिद्धिक जीव को भी सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती । यदि कदाचित् थीद्धि निद्रा वाले
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