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को अनजान में चारित्र दे दिया हो तो शास्त्रोक्त प्रमाणानुसार उसका वेश उतार लेना चाहिए ।
शङ्का -- यदि ऐसा है तो फिर कर्मग्रन्थादि में छटे प्रमत्त गुणस्थान तक स्त्यानद्वित्रिक के उदय का कैसे प्रतिपादन किया गया है ?
समाधान -- यह बात मतान्तर से सम्भव हो सकती है । अथवा पूर्वप्राप्त सम्यक्त्वादि जीव को स्त्यानद्धित्रिक निद्रा का उदय होना बताया गया है । अतः किसी भी प्रकार का विरोध नहीं है । वास्तविक तत्व तो केवली भगवान् ही जाने !
प्रश्न :- २१ - एक जोव को एक भव में कितने वेदों का उदय होता है ?
उत्तरः- किसी जीव को कर्म की विचित्रता से तीन वेदों का भी उदय होता है । जिस प्रकार किसी प्राचार्य के कपिल नामक शिष्य को उसके विचित्र कर्मों के कारण तीनों वेदों का उदय हुआ था ।
वेदों का ( उसके विचित्र कर्मों के चन निशीथ सूत्र की पीठिका में गया है ।
कपिल नामक इस शिष्य के जीवन में उदय होने वाले तीनों साथ ) विस्तार पूर्वक विवे तथा बृहत्कल्प में भी किया
पद्धिक प्रत्यनीक
देव छल सकते हैं, ऐसा शास्त्रों में सुना जाता है । परन्तु यतना युक्त प्रप्रमादी सराग संयमी साधु को कोई छल सकता है या नहीं ?
प्रश्न :- २२-प्रमादयुक्त सराग संयमी साधू को
उत्तरः- जो देव अल्पऋद्धि वाले तथा अर्धसागरोपम से कम स्थिति वाले होते हैं वे अप्रमादी यतनायुक्त साधु को
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