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-चन्द्र के मुकुट में अपने नामको प्रकट करने वाला चन्द्र मण्डल का चिह्न होता हैं। इसी प्रकार सूर्यादिके भी।
यही बात प्रज्ञापना में भी कही है। प्रश्न ३८:- “जोयरिणग सठ्ठि भागा' इत्यादि संग्रहणी की गाथा
में ताराओं के विमानों को लम्बाई एवं चौड़ाई आधे कोस की तथा ऊचाई एक कोस के चौथे भाग की कही गई है तो क्या इस प्रमाण के कम ताराओं का
विमान नहीं होता है ? उत्तर :-यहाँ जिन ताराओं के विमानों को लम्बाई चौड़ाई
एवं ऊँचाई का प्रमाण कहा गया है वह तो उत्कृष्ट स्थितिवाले ताराओं का प्रमाण है। जघन्य स्थिति वाले ताराओं के विमानों का प्रमाण तो पांचसौ धनुष की लम्बाई चौड़ाई और ढाई सौ धनुष की ऊंचाई का कहा गया है यही बात श्री तत्त्वार्थ भाष्य में भी कही है कि"सर्वोत्कृष्टायास्ताराया अर्धकोशः जघन्यायाः पंचधनुः शतानि विष्कम्भाधेवाहल्याश्च भवन्ति ।" --सर्वोत्कृष्ट स्थिति वाले ताराओं के विमान की लम्बाई चौड़ाई आधे कोस की और जघन्य स्थिति वाले ताराओं के विमान की लम्बाई चौड़ाई पाँच सौ धनुष की तथा ऊँचाई तो दोनों की चौड़ाई से प्राधो जाननी चाहिये।
प्रश्न ३६:-मनुष्य क्षेत्र के बाहर रहने वाले चन्द्रादि ज्योतिषी
देवों के विमानों का प्रमाण ढाई द्वीप में रहने वाले
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